चुनी कहानियाँ , चुने निबंध | CHUNI KAHANIYAN, CHUNE NIBANDH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
385
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अमृता प्रीतम - Amrita Pritam
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“बरफी मे डालकर खिलायी थी । और नही तो वया, वह ऐसे ही अपने माँ-
बाप को छीडकर चली जाती ? वह उस को बहुत चीजें लाकर देता था। सहर से
घोती लाता था, चूडियाँ भी लाता था शीशे की, भौर मोतियों की माला भी 1”
“दे तो चीजें हुईं न । पर यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि उस ने जगली बूटी
खिलायी थी !”
“नही खिलायी थी तो फिर वह उस को प्रेम क्यो करने लग गयी ?*
“प्रेम तो यों भी हो जाता है ।”!
“नहीं, ऐसे नहीं होता । जिस से माँ बाप बुरा मान जायें, भला उस से प्रेम
कंसे हो सकता है ?”
“तू ने बह जगली बूटी देखी है ?”
मं ने नही देखी | वो तो बडी दूर से लाते हैं। फिर छिपाकर मिठाई मे डाल
देते हैं, या पान मे डाल देते हैं। मेरी माँ ने तो पहले ही बता दिया था कि किसी
के हाथ से मिठाई नही खाना 1”
“तू ने बहुत भच्छा किया कि किसी के हाथ से मिठाई नहीं खायीं। पर तेरी
उस सखी ने कंसे खा लो २”
“अपना किया पायेगी 1”
किया पायेगी। कहने को तो अमूरी ने कह दिया पर फिर शायद उसे
सहेली का स्नेह आ गया या तरस आ गया, दुसे हुए मत से कहो लगी, “बावरी
हो गयी थी बेचारी ! बालो म॑ कघी भी नही लगाती थी। रात को उठ उठकर
गाने गाती थी।”
“क्या गाती थी ?”!
पता नहीं, क्या गाती थी । जो कोई बूटी खा लेती है, बहुत गाती है। रोती
भी बहुत है ।”
बात गाते से रोने पर आ पहुची थी | इसलिए में ने प्रगूरी से और कुछ न
पूछा ।
ओर अब बडे थोड़े ही दिनो की बात है। एक दिन अगू री नीम के पेड के नीचे चुप-
चाप मेरे पास आ खड़ी हुई | पहले जब अगूरी माया करती थी तो छव छन॑ करती,
बीस यज्ञ दूर से ही उस के आने की आवाज़ सुनायी दे जाती थी, पर आज उस के
पैरों की झाँजरें पता नहीं कहाँ जोयी हुई थीं। मैं ने किताब से सिर उठाया और
पूछा, क्या बात है, अगूरी २?
अगूरी पहले कितनी ही देर मेरी ओर देखती रही, फिर धीरे से कहने लगी,
*बोबोजी, मुझे पदना सिखा दो
बया हुआ अगुरी २!
जगली यूदो / 7
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