समय-समय पर | SAMAY-SAMAY PAR

SAMAY-SAMAY PAR by केदारनाथ अग्रवाल -KEDARNATH AGRAWALपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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केदारनाथ अग्रवाल -KEDARNATH AGRAWAL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य-चिन्तन / 15 धरती की प्यारी लड़की सीता के गाने गाये। कली ज्योति में खिली मिट्टी से चढ़ती हुई। “वर्जित स्वैल', 'गुडअर्थ' अब के परिणाम हैं। कृष्ण ने भी जमीं पकड़ी, इन्द्र की पूजा की जगह गोवर्धन को पुजाया; मानवों को, गायों और बैलों को मान दिया। हल को बलदेव ने हथियार बनाया, कन्धे पर डाले फिरे। खेती हरी-भरी हुई। यहाँ तक पहुँचते अभी दुनिया को देर है। [नये पत्ते, पृष्ठ संख्या 30-31 ] एक दूसरी रचना इसी बात को और उभारकर यों व्यक्त करती है :- राजे ने अपनी रखवाली को; किला बनाकर रहा; बड़ी-बड़ी फौजें रखीं। चापलूस कितने सामन्त आये। मतलब की लकड़ी पकड़े हुए। कितने ब्राह्मण आये पोथियों में जनता को बाँधे हुए। कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाये, लेखकों ने लेख लिखे, ऐतिहासिकों ने इतिहासों के पन्ने भरे, नाट्यकारों ने कितने नाटक रचे, रंगमंच पर खेले। जनता पर जादू चला राजे के समाज का। लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं। धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ। लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर। खून की नदी बही।




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