उल्टा दरख्त | ULTA DARAKHT

ULTA DARAKHT by कृष्ण चंदर - Krishna Chandarपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिल्म डायरेक्टर ने जवाब दिया, “हमें क्या मालूम | हम फिल्म डायरेक्टर हैं, ज्योतिषी नहीं हैं।” यूसुफ डाल पर आगे बढ़ गया | डाल की आखिरी टहनी का आखिरी पत्ता एक बहुत बड़े कैमरे को छू रहा था । यहाँ मद्धिम-मद्धिम रोशनी भी थी । यूसुफ ने कैमरे का बटन दबाया । कैमरे का शीशा, यानी दरवाजा खुलकर अलग हो गया। थोड़ी दूर तक वह अँधेरे में चलता रहा | फिर यकायक कहीं पर एक खटका सा हुआ और चारों तरफ रोशनी ही रोशनी हो गई और उसने देखा कि वह एक बहुत बड़े शहर के दरवाजे पर खड़ा है। मशीनों का शहर जहाँ तक नजर जाती थी, यूसुफ को जगह-जगह ऊँची-ऊँची चिमनियों से धुआँ निकलता दिखाई दे रहा था । बड़ी-बड़ी ऊँची इमारतें थीं। शहर बड़ा खूबसूरत और साफ-सुधरा दिखाई दे रहा था। यूसुफ उसे देखकर बड़ा खुश हुआ। उसने सोचा, चलो कुछ रोज इसी शहर की सैर करेंगे । यह सोच कर उसने दरवाजे के अन्दर कदम रखा । उसके कानों में एक आवाज आई, “जेब सम्भाल कर चलिए, जेबकतरों से होशियार रहिए । यूसुफ ने इधर-उधर देखा | मगर उसे कहीं कोई आदमी दिखाई नहीं दिया जो यह आवाज दे सकता था। यूसुफ दरवाजे से निकल कर आगे सड़क पर चला गया । यकायक फिर एक आवाज आई, “फुटपाथ पर चलिए सरकार !” यूसुफ घबरा कर फुटपाथ पर चलने लगा । सड़क पर मोटरें गुजरने लगीं। बड़ी खूबसूरत मोटरें थीं। आगे चौक पर जाकर ये सब मोटरें रूक गईं । एक लाल रंग की बत्ती के सामने ये मोटरें रुकी पड़ीं थी | यूसुफ ने सबसे आगे की मोटर में झाँक कर देखा तो हैरत से उसका मुँह खुला का खुला रह गया क्योंकि मोटर में कोई आदमी नहीं था । ज्योंही यूसुफ ने मोटर में झाँका, मोटर के अन्दर से आवाज आई, “आईए, तशरीफ लाईए ।” फिर मोटर का दरवाजा आप ही खुल गया । यूसुफ स्प्रिंगदार गद्दों पर डट कर बैठ गया । मोटर में से फिर आवाज आई, “कहाँ चलिएगा दूर यूसुफ ने कहा, “बाजार ले चलो | इतने में हरी बत्ती जली | मोटर खुद बखुद रवाना हो गई । अब मोटर बाजारों में से गुजर रही थी । बाजार में हर दुकान खुली पड़ी थी और हजारों तरह की चीजें दुकानों पर नजर आ रही थी । खूबसूरत कपड़े, तरह-तरह के फल और केक-बिस्कुट और रंग-रंग की महकती हुई मिठाइयाँ | हर गाज उल्टा दरख्त




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