अमृता प्रीतम की श्रेष्ठ रचनाएँ | AMRITA PREETAM KI SHRESTH RACHNAYEN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
436
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अमृता प्रीतम - Amrita Pritam
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बुन क अपने गाँव में आर आसपास के ग़ावा से स्त्रिया था यह विश्वास था
कि प्रत्येक वाल्वः बे जम के समय विधिमाता स्व्रय आती है। यदि विधिमाता अपने
पत्ति से हँसती-खेलती जाती हू तो आकर चटपट उडकी वनाक्र चली जाती हू, क्योकि
उसे अपने पति के पास लौटने की जत्दी होती ह। किन्तु यदि विधिमाता अपने पत्ति
से रूववर आती हैं ता उसे छौटने वी काई विशेष जल्टी ता होती नहीं, वह आकर
बहुत समय तक बढती हू और आराम से लडका बनाती हू। सो सब स्त्रिया ने मिलकर
फिर गाना आरम्भ किया
विवभाता रस्सी आावी ते मत्ती जांदी,
विधभाता रस्सी आधी तें मत्ती जावी ।
विधिमता झायद कही पास ही सुन रही थी, उस ने उन का वहा मान लिया ।
पद्रह-सोशह दिन बाद पूरो की माँ के छडका हो गया । थाहा के दूर-पार के सम्बन्धिया
को भी धधाइया मिजने लगी। चिताजनक केबल एक वात थी, और वह यह कि
हडका तेछट था। तीन बहनों पर भाई हुआ था । पूरा वी मा को बडी चिन्ता थी,
राम वर किसी प्रकार लडक! बच जायें, और बच जाये ता माता पिता को भारी न
हा | विधिमाता का मनानेंवांली स्नियाँ फिर एक बार इकट्टी हुई ओर वासी के एक
बढेनस थाऊ के बीच में वहान्सा छेद कर के रूडके को उस में से आरखार निकाता,
स्ाव में गाती रही
विसला दी घाड आयी,
विपत्य दो धाद आयी ।
तोन रुडविया के दल के बाद इश्वर वी इपा से उत्पन हृए छटके के सारे
शगुन श्रनावर अब सद को विश्वास हो गया कि ऊूडवा! बच जायेगा |
पद्वहरवाँ बप आरम्म हातेन्टाते पूरो के अग प्रत्यग में एक हुत्गर-सा आ गया ।
पिछले बरस का सारा क््मीज़ उस क॑ शरीर पर तम हा गयी । पुरो ने पास को मण्डी
से पूछावाला छोट लापर नये कुरते सिल्बाये । क्तिना सारा अपरक' छगाकर चुनरियाँ
तयार वी ।
पूरो की सहेल्था ने उसे दूर स उस का मेंगेतर रामधद दिख दिया था।
पूरा वी आँसा में उत्त की छवि परी वी पूरी उतर गयी थी । उस का ध्याम बाते ही
पूरां का मुँह लाठ हा जाता था ।
पूरा निराव हातर बहुत कम ही बाहर निकछ सकती थी वयावि पास के
गाँववाणा का इस गाँव में आना-जाना चहुत रहुता था। उत्त को सथुराल के गाववाले
बही पूरी वा देख न लें इस बात से पूरो बहुत डरती थी । और फिर वह गाँव बहुत
बर के मुसत्माना वा हा गया था।
वसे ज़रा दिन-दढे पूरा और उस की शहेलियाँ खेता में घम फिर आती थी!
पई बार पूरा अपन सेवा के पास स गुजरती हुई कच्चा स”व के आसपास अटव स्ट्ती,
पिज्र ड
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