लिखाई की कहानी | LIKHAI KEE KAHANI BGVS
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
14
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अनीता रामपाल -ANEETA RAMPAL
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ख़ास संकेत बना रहा था? अब उसके मन में तो झाँका नहीं जा
सकता। न ही कोई और सुराग दिखाई पड़ता है। देखा कैसे-कैसे
चक्कर हैं लिखाई की कहानी में ! पर यही तो मज़ा है-हमेशा, हर
मोड़ पर गहरा रहस्य ! ज़ासूस की तरह अनजाने संकेतों में से छिपा _
हुआ मतलब खोज निकालना होता है।
हड्डी पर खुरचे इन संकेतों का पुराना रहस्य हाल ही में ( यानी
लगभग 23 साल पहले) मालूम हुआ है। मारशैक नाम के एक
व्यक्ति ने इसकी खोज की । उसके मन में यह विचार आया कि चूँकि
हड्डी पर निशान क्रम से बने लगते हैं इसलिए जरूर यह किसी
नियमित घटना-क्रम को ही दर्शाते हैं। सोचिए तब आदिमानव के
सामने कौन-कौन सी ऐसी घटनाएँ थीं जो क्रम से बार-बार घटती
रहतीं ?
मारशैक ने जाँच के दौरान पाया कि वाक़ई हड्डियों पर खुरचे
संकेत चाँद के घटते-बढ़ते क्रम को दिखा रहे थे। यानि अमावस से
पूनम और फिर अमावस तक का जो चक्र है उसी को देखकर
आदिमानव ने मानो उसका एक 'लिखित ' दस्तावेज़-सा बना लिया
था उसी हड्डी पर। हर दिन का एक संकेत लगाया था, और कई
महीनों तक यह काम किया था।
यह जानकर मारशैक तो दंग रह गया था। उसे स्वयं विश्वास
नहीं आ रहा था कि यह सच है। और उसे डर था कि दुनिया के
अन्य विशेषज्ञ उसकी बात को स्वीकार नहीं करेंगे। उसे अब ख़ूब
मेहनत करनी थी। कई प्रमाण पेश करने थे इस बात को साबित
करने के लिए।
मारशैक ने अलग-अलग जगहों पर पाई गई ऐसी हड्डियों को
सालों तक बारीक़ी से जाँच की | सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप ) से उन्हें
परखा | उसने यह भी पाया कि कई जगह तो आदिमानव ने विभिन्न
-......--नबयज+जज+-7ः
तरह के संकेतों का इस्तेमाल भी किया था। उदाहरण के लिए,
चित्र-2 में दिखाई हड़ी पर तो केवल छोटी लाईनें बनी हैं, छोटी-
छोटी लाईनों के कई समूह । पर चित्र-3 वाली हड्डी पर विभिन्न तरह
के कई संकेत पाए गए। और आश्चर्य की बात है कि हड्डी का यह
'कैलेन्डर' पूरे साल भर तक बनाया गया था।
हड्डी हल्की और छोटी होती है और इसे अपने साथ-साथ लिए
चलना भी संभव था। सोचिए तो, पच्चीस हज़ार साल पहले उस
आदिमानव ने कितनी लगन के साथ उस हड्डी पर साल भर तक
एक-एक दिन का संकेत बनाया होगा। उस साल में चाँद कब पूरा
दिखा, कब आधा, और कब-कब चाँद दिखा ही नहीं-इस सब
जानकारी को उसने खुरचकर छोड़ दिया था।
भला क्या उपयोग था इस जानकारी का ? हम आज तो केवल
अनुमान ही लगा सकते हैं। शायद उससे वह जान सकता था कि
कितने, ' पूरे चाँदों ' बाद जब ठण्ड पड़ेगी तो बर्फ़ से बचने का उपाय
उसे ढूँढना है। या शिकार के लिए निकले तो आनेवाली अमावस
तक अपनी गूफ में लौट आना है।
क्या मालूम ? हो सकता है कि किसी गर्भवती महिला ने हड्डी
पर समय का हिसाब रखकर यह जानना चाहा हो कि कितने पूरे
चाँदों बाद उसे जचकी के लिए तैयार रहना पड़ेगा। (वैसे, तब
गिनती तो वे जानते नहीं थे-पर क्या गिनती बीज भी इसी हड्डी में
नहीं छिपा है ?)
हड्डियों के 'कैलेन्डर' की ख़बर सुनते ही दुनिया भर में ख़ूब
_ हलचल मच गई थी। पुरानी चीज़ों का अध्ययन करने वाले लोगों ने
सोचा भी न था कि लिखाई की शुरुआत का बीज इतने पहले खुरची
हुई किसी हड़ी में छिपा होगा । तब तक तो सभी यही मानते थे कि
आदिमानव को केवल चित्रकारी आती थी, संकेत बनाने नहीं।
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