भूत, जादू और धर्म - विज्ञान के आईने में | BHOOT, JAADU AUR DHARM - VIGYAN KE AAIYNE MEIN

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सीताराम शास्त्री -SITARAM SHASTRY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अहल्या उद्धार हम सभी लोगों को यही पता है कि अहल्या अपने पति मुनी गौतम के शाप से पत्थर बन गई थी और राम के परों के स्पर्श से उसका उद्धार हुआ था। लेकिन यह अदभुत कहानी असल में बंगला के कवि कृत्तिवास और हिन्दी के. कवि तुलसीदास की रची हुई है । मूल बाल्मीकि रामायण में अहल्या पत्थर नहीं, सिफ स्त्री है । . रामायण के आदिकाण्ड के ४८ वें अध्याय में है कि मुनी विश्वामित्र किशोर राम और लक्ष्मण को लेकर गंगा मे नौका पर जा रहे थे राजा जनक के पास | रास्ते में इधर-उधर की चीजें देखते हुए राम-लक्ष्मण को बहुत सी जिज्ञासाएं होती हैं जिन्हें शांत करने के लिए विश्वामित्र उन्हें अनेक कहानियाँ सुनाते चलते हैं। उसी सिलसिले मे राह मे: जब गौतम मनी का नि्जन, त्यागा हुआ आश्रम मिला तो विश्वामित्र बोले--परम श्रद्धेय मनी गौतम के इस आश्रम मे अब सिफ्फ उनकी पत्नी अहल्या रहती हैं। अत्यंत सुन्दर अहल्या के साथ इन्द्र ने व्यभिचार किया था। मनी गौतम जलावन की लकड़ी लेने बाहर गये हुए थे । इसी मौके पर इन्द्र वहाँ गौतम का रूप धारण कर पहु चे | अहल्या भ्रम में पड़कर इन्द्र के बरे प्रस्ताव पर राजी हो गई। इस बीच गौतम लौटकर आये और इन्द्र रंगे हाथों पकड़े गये और सारा भेद खल गया। क्रोध से भर कर मुनी ने इन्द्र को शाप दिया कि रे दृष्ट ! जा इस पाप के लिये तु नपुन्‍्सक हो जा ! और फिर अहल्या से बोले-- माँ चला, तम रहो अकेली । शरीर पर राख मलकर तुम उपवास करती हुई रहो । दशरथ पुत्र राम के दर्शन न मिलने पर तुम अपवित्न अवस्था में ही मर जाओगी । यर्देतज्व वन घोरं रामो दशरथात्मज: आगभिध्यति दुर्धषेस्तदा पृता भविष्यसि विश्वामित्र के म्‌, ह्‌ से यह कहानी सुनकर राम के मन मे करुणा फूट पड़ी । उन्होंने उसी समय महल्या को दर्शन देकर पवित्र कर दिया । उधर गौतम को खछब यह खबर मिली तो वे भी वापस लौट गए और अहल्या को लेकर सुखपूबंक रहने लगे । _ रामायण की अहल्य-उद्धार कौ इस कहांती में देशी कवियों ने बहुत ही बातें अपनी तरफ से जोड़ दी और अहल्या को पत्थर बना दिया । किर राम के स्पर्श से उसे पत्थर से स्त्री बनाया । मुल कहानी में हालांकि राम चरित्र का महत्व दिखलाना हो मुख्य उददेश्य था फिर भी उसका समाज की वास्तविकता से मेल थ!। और चरित्र - बित्रण में भी बास्तविकता थी।.. समाज के महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली लोगों के 'औरकर + _झमर्थेन और कृपा से बहुत - से गिरे हुए लोगों को भी समाज में स्वीकार कर लिया जाता है । जाहिर हे कि त्यागी हुई अहल्या को समाज में स्वीकृति क्लिना राजपुत्र राम के लिये हो सम्भव था। इसके अलावा अहल्या का बेटा शतानन्द था जो राम का गृह-पुरोहित था ! इतनी बड़ी सिफारिश के रहते क्या अहल्या का उद्धार न होगा ? असल में रामायण काव्य के मल में ही व्यक्तिपुजा की भावना हू । राम को “पतितपावन” का दर्जा दिलाने के लिये ही एक स्त्री को व्यभिचारिणी बनाया गया । लेकिन वेदिक पण्डित कुमारिल भट्ट (८वीं शताब्दी) ने रामायण की इस रुप्राख्या को अस्वीकार किया हैँ। उन्होंने अपने ''पूर्व मौमांसा” ग्रन्थ में कहा.है कि अहल्या की यह कहानी जरा भी सही नहीं हू । यह अथर्वे वेद के शतपथ ब्राह्मण के सुक्त ३३-४-१८ पर आधारित हूं । वह सूक्त ह-- _ उत्तीष्ठ तीम्म स्ते म्हे अभिचक्ष . . इन्द्र--अहल्या सुदानव घण्टा प्राशभव: ब्राह्मणस्पतिः ः रुशादस्य पाज: वुशुते रदयोरुपस्थे सूर्य का नाम इन्द्र और अहल्या रात । 'हल' अर्थात्‌ प्रकाश जिसका नहीं हें, वही है अहल्या। सूर्य रात के आंगन में आकर उसका अन्धकार दूर भगाता है मानो उसके साथ बलात्कार कर रहा हो । मौतम एक पवेत है । रात और अन्धेरा पवत के पींछे रहते हैं। उसपर तेज सूर्य (इस्द्र) की किरणें पड़ती हैं। इसी रुपक पर अहल्या की कहानी गढ़ ली गई । लेकिन बतेमान काल के समाज बेज्ञानिक एक अलग ही व्याख्या करते हैं । उनके झत से अहल्या का अर्थ ऐसी भूमि से हे जिसपर अभी तक हल नहीं चला हे । अहल्या की कहानी गेरआबाद भूमि के उद्धार की कहानी हे । अनाये लोगों की कृषि-ब्यवस्था को आर्यो ने ग्रहण कर लिया था। बिना जोती हुई जमीन पर हल चलाकर ( बलात्कार ) फसल पंदा की गई और उससे आये मुनियों का इधर-उधर भटकनेवाला जीवन खत्म हुआ अहल्या का उद्धार तब जीवन का मीत बन गया । [१९]




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