चार अध्याय | CHAR ADHYAY

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र कस पात्र की खोज मे जपह-जगह को खाह छाननी पडेपो, उत्त समय यदि एसा सुरमा के पास रहेगो तो सउहो की आँदो मे सबसे पहले एला ही जेंचेणो । उन्हे बाग पता हे हि सुन्दरता किसे कहते हैं ! लम्बो सांस सेहर वह इसी चिन्ता में डूब जाती । इन बातों से पत्ति को परिचित व राने की आवश्यकता पही । ग्रहस्थी की हर चीज पुरुषो को नही गूसती । एला का जल्द-से-जल्द विवाह कर देने हे लिए माधयी बेचे प हो उठी । विशेष प्रयत्त॒ करना नहीं पडा। अच्छे-अच्छे पा अपने आप आने लगे । उनमे कुछ ऐसे भी आते जिनसे सुरमा का सम्ब'ध स्थिर करने के लिए माघवी मचत उठतो । पिस्तु एला उन्हे बार-बार निराश क्र लौटा देती । भतीजी के इस रुसे हठ से सुरेश बेचेन हो उठे । घधर चागी के लिए भो बर्दाश्त करना दूभर हो उठा । एक बगाली की जवान लडकी के लिये अच्छे वर को उपेक्षा भपराध है । नाना प्ररार की वयसोचित आशकाओ और अपनी जिम्मेदारी या एपाल पर सुरेश का कलेजा कापने लगा। एला स्पष्टरूप से रामश गई कि उसके कारण चाचा फऐ अन्तर मे स्नेह और ससार या दन्दर उठ खडा हुआ है । इसी समय इद्रनाथ का उस शहर में आगमन हुआ। देश के छात्र उन्हे राजचक्रवर्ता की तरह मातते थे। उपर तेज असाधारण था उहू और रपाति भी प्रचुर थी । एक दिस सुरेश के घर से उद्दे निमन्‍त्रण मिला । उस दिन किसी सुयोग से परि- चय न होने पर भी एला ने नि सोच भाव से उसी कहा, कया आप मुझे कोई काम नहीं दे सकते ?! आजकल इस प्रकार या आवेदय विशेष आश्चययनक नही । उनकी सोदय-ज्योति से इद्धनाथ चित हो उठे । उन्होंने कहा, 'कलकत्ते में हाल हो मे वालिकाओं के लिए नारायणी हाई स्कूल खोला गया है | उसकी प्रधात शिक्षिया के रूप तुम्हे नियुवत् कर सकता हूँ । तयार हो ?' तैयार हूं, यदि आप मेरे ऊपर विए्परास यरे ।' इब्धनाथ ने एला के मुघ पर अपनी उज्ज्वल हृष्दि




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