मैरी क्यूरी | MARIE CURIE

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गीता बंधोपाध्याय - GEETA BANDOPADHYAYA

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहुत कोशिश-पैरवी और पदार्थ-विज्ञान विभाग के अधिकारियों से विनय-प्रार्थना करने के बाद मारी के लिए विश्वविद्यालय की निचली मंज़िल में एक सीलन भरा कमरा मिला। कमरा क्या था, फालतू गोदाम समझो उसे | दिमाग ठिकाने रखना और काम करना-दोनों बातें बहुत कठिन थीं यहां। गर्मी में उमस और पसीने से बुरा हाल। जाड़ों में ठंड; प्रयोग के सूक्ष्म औज़ार काम न करें। लेकिन यहां कोई मारी की तपस्या में विघ्न डालने वाला नहीं था। एकचित्त होकर अपने औज़ार से वह यूरेनियम के कण-कण की जांच करती। यह औज़ार किसी और ने नहीं, स्वयं पियरे क्यूरी ने उसके लिए तैयार किया था। औज़ार बहुत पेचीदा न थे। अदृश्य किरण का एक विशेष गुण वैज्ञानिकों को खास महत्व का लगा। यों तो किसी गैस या हवा के भीतर से बिजली नहीं दौड़ सकती, लेकिन दौड़ भी सकती है-- अगर उसमें अदृश्य किरण पड़ जाएं। तुम्हें पियरे वाले औज़ार के बारे में कुछ बता दूं? इस औज़ार में धातु की दो पत्तियां थोड़े से फासले पर बैठाई गई थीं। इन पत्तियों के बीच ज़रा-सी यूरेनियम रखने की देर होती कि दोनों पत्तियों के बीच से, हवा के भीतर से, बिजली दौड़ने लगती। क्‍यों होता ऐसा? बस, यूरेनियम से निकलने वाली उसी अदृश्य किरण के कारण। कितनी बिजली दौड़ रही है, इसका भेद भी बिजली मापने के यंत्र से मालूम हो जाता। बिजली के प्रवाह को मापकर अनुमान लगाया जा सकता था कि यह अदृश्य किरण कितनी शक्तिशाली है। मारी सोचने लगी.... क्या? वह सोचने लगी कि यूरेनियम के सिवा और किसी धातु से भी इस तरह की किरण निकलती है या नहीं। सो, उसने फैसला किया। फैसला यह कि संसार के सभी जाने-पहचाने तत्वों को जांचकर देखेगी कि किसी और से ऐसी किरण निकलती है या नहीं। 28 कितनी हिम्मत का काम था! सोच कर ही ताज़्जुब होता है। घर-गृहस्थी, पति, ससुर, बेटी |! सभी से मारी को अगाध प्रेम था। मारी ने कभी अपने कर्तव्य में लापरवाही नहीं की थी। और अब एक अज्ञात किरण को पकड़ने की उत्सुकता से उसके चेहरे पर नई चमक, आंखों में नई रोशनी, आ गई थी। जितनी धातुओं का अब तक पता था, सभी को मारी ने जांच कर देखा। पता चला कि थोरियम नाम की जो धातु है, उससे भी इसी तरह की अदृश्य किरण निकलती है। किसी धातु से अदृश्य किरण निकलने के गुण का नाम उन्होंने रखा-- रेडियो-ऐक्टिविटी । लेकिन यह रेडियो-ऐक्टिविटी दो ही धातुओं में क्‍यों? मारी की उत्सुकता का ठिकाना न था। एक पल वह शांत न बैठ सकी। सीधी म्यूज़ियम पहुंची। जितने भी खनिज पदार्थ वहां थे, सब की परीक्षा करके वह देखेगी। इन खनिज-पदार्थों में से बहुतों के गुण-अवगुणों का पता वैज्ञानिक लोग पहले ही लगा चुके थे। मारी को अब केवल उन्हीं पदार्थों की परीक्षा करनी थी जिनके रेडियो-ऐक्टिव होने की संभावना थी। 'संभावना वाले” ऐसे ही एक पदार्थ को चुनकर मारी ने उसमें से यूरेनियम और थोरियम धातुओं को अलग किया और उनको परीक्षा की। अलग-अलग परीक्षा के बाद उसने शेष पदार्थ को परीक्षा को। मारी आश्चर्य से हक्की-बक्की रह गई। उसने बार-बार परीक्षा की। कम से कम बीस बार परीक्षा की। बड़े अचरज की बात है! यूरेनियम और थोरियम में जितनी है उससे कहीं ज़्यादा रेडियो-ऐक्टिविटी इस पदार्थ में है। तब? तब मारी ने सोचा कि ज़रूर कोई चीज़ ऐसी है जो यूरेनियम और थोरियम से भी ज़्यादा शक्तिशाली है और यह रेडियो-ऐक्टिविटी उसी के कारण है। यह बात है 1898 की। मारी ने एक वैज्ञानिक लेख लिखा। लेख में उसने घोषणा की कि पिचब्लेंड और चारकोलाइट खनिज-पदार्थों में यूरेनियम और थोरियम से अधिक--हां कई गुनी अधिक-रेडियो-ऐक्टिविटी है। पता चलता है कि इन खनिज पदार्थों में, थोड़ी मात्रा में ही सही, कोई ऐसी चीज़ ज़रूर है जो बहुत शक्तिशाली है और जिस पर वैज्ञानिकों की अब तक नज़र नहीं पड़ी। अब तो अपना खोज-बीन का काम छोड़ पियरे भी मारी के काम में हाथ बंटाने लगे। मारी का काम था भी तो बहुत महत्व का। मारी और पियरे की मिली-जुली ताकत इस अनजानी चीज़ का पता लगाने में जुट गई। 29




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