मुनि श्री प्रणम्यसागर जी - Muni Shri Pranamya Sagar Ji
महाकवि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य समुदाय में से एक अनोखी प्रतिभा के धनी, संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में निष्णात, अल्पवय में ही अनेक ग्रंथों की संस्कृत टीका लिखने वाले मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने जनसामान्य के हितकारी पुस्तकों को लिखकर सभी को अपना जीवन जीने की एक नई दिशा दी है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने भगवान महावीर के सिद्धांतों को गहराई से चिंतन की कसौटी पर कसते हुए उन्हें बहुत ही सरल भाषा में संजोया है, जो कि उनके ‘गहरे और सरल’ व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित करती है।
मुनि श्री का लेखन अंतर्जगत की संपूर्ण यात्रा का एक नेमा अनोखा टिकिट है जो हमारे अंतर्मन को धर्म के अनेक विषयों तक पहुंचाता है, ठहराता है तथा अंतर्निहित शाश्वत् उपलब्धियों को प्रशस्त करता हुआ अपने लक्ष्य को प्राप्त होता है। आध्यात्म शक्ति से निसृत पवित्र भावनाओं से श्रद्धानत् शब्द और विषय वस्तु का ऐसा संगम अन्यत्र कहीं दृष्टिगत नहीं होता। निश्चित रूप से मुनि श्री का रचना संग्रह पाठकों के मन मस्तिष्क में एक अलग पहचान निर्मित करेगा एवं समाज में छिपी अनेक बुराइयों को दूर करते हुए मनुष्यता का एक सच्चा संदेश जारी करेगा।