रंगनाथ रामायण | Rangnath Ramayan

Rangnath  Ramayan by श्री अवधनन्दन - Shree Avadhanandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) पवादूत रह । उत्तर-भारत क कुछ राजाओं न जनघमं को भी अपनाया था । धीरे धीरे इन दोनों धर्मों न अपनी विजय-पात्रा सदर दक्षिण तक बढ़ाई । दक्षिणापथ के कई राजाओं ने इत धर्म के आगे अपने घुटने टेक दिये। आंध्र-राजाओं में सबसे प्रथम दातवाहत थे जिन्होंने वैदिक धर्म के अनुयायी होते हुए भी बौद्ध तथा जैन धर्मों का आदर किया । इन्हीं शातवाहनों के सासंत इक्ष्वाकु-वंध के राजा (ई० पु० २०० ) बौद्धघर्म के अनुयायी बने । इन्होंने बौद्ध तथा जैन धर्मों को बहुत आदर दिया और बेदिक धर्म के प्रभाव को नष्ट करने का भी यथाशक्ति प्रयत्न किया । इस प्रकार दक्षिण भारत में वैदिक बौद्ध एवं जैन धर्मों के बीच कई दाताब्दियों तक संघर्ष चलता रहा। भीच-बीच में ऐसे आंध्र-राजा भी हुए जिन्होंने वेदिक धर्म को प्रोत्साहन दिया और बौद्ध तथा जैन धर्मों को समल नष्ट करने का प्रयत्न किया । सन्‌ ८२४ ई० में दंकराचायें का आविर्भाव हुआ । उन्होंने बौद्धघ्म के प्रचार को रोकने तथा वेदिक धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने का जो प्रयत्त किया उससे पाँध्र-प्रदेश के वेदिक धर्मावलंबियों को आंध्र-देवा से बौद्धघर्म को. समूल उखाड़ फेंकने की प्रेरणा सिली। उन्होंने कई समोचों पर बौद्धघ्मं का विरोध किया । बौद्धघर्मावलंबियों को तरह-तरह की यातनाएं दी गई और कई ऐसे प्रस्थों के निर्माण का प्रयत्न हुआ जिनके द्वारा बेदिक धर्म तथा उनके सम्थेक पुराणों की प्रतिष्ठा बढ़ी । वातावरण भी इसके लिए अनकल था । उसी समय तमिल-देश में अनेक बेष्णव तथा दोव संतों का भाविभाव हुआ जिन्होंने अपनी सरस एवं सबल रचनाओं से बौद्ध तथा जैन धर्मों का विरोध भारंभ किया । उसी युग में आंध्र में राजराज नरेर्द्र नामक एक विख्यात राजा हुए नो वैदिक धर्म के अनन्य अनुयायी थे। इन महापुरुषों का प्रोत्साहन पाकर तेलुगु-साहित्य में पुराण-पुग प्रारंभ हुआ जिसमे प्रधानतया पुराणों और इतिहासों का अनुवाद-का्यं हुआ । इन यन्थों की रचना करने में कवियों का उद्देय्य यहीं था कि उनके द्वारा भगवान के उस लोकरंजनकारी रूप की अभिव्यक्ति को जाय जिसको आलंबन सानकर सानव- हुदय वेदिक धमं के कल्याण-माग की ओर अपने आप आकृष्ट हो सके । लगभग सन्‌ १०२१४ ई० मे कवि नन्नया ने सहाभारत का अनुवाद प्रारंभ किया किस्तु वे महा- भारत के केवल ढाई पव॑-मात्र की रचना कर पाये थे कि उनका स्वर्गवास हो गया। इसके परदचात्‌ तेलगु-रामायण (रंगनाथ रामायण) की रचना हुई । तेलूगू में रामायण की रचना को प्रेरणा देनेवाली परिस्थिहियाँ तुलसी-रामायण की रचना के लिए प्रेरणा देनेवाली परिस्थितियों से भिन्न थीं। रंगनाथ रामायण का उद्देश्य बेदिक धर्म की प्रतिष्ठा को बढ़ाना तथा रामचस्द्र जैसे अलौकिक शबितश ली एवं सौंदये- संपन्न व्यक्ति तथा अवतार-पुरुष के भव्य चरित्र को प्रस्तुत करना था जिसकी अनभति- मात्र से मानवच्हुदय गद्गद हो उठे । या यों कह सकते है कि रंगनाथ रामायण उस ध्यापक पृष्ठभूमि को तैयार करने में सफल हुई जो पीछे चलकर राम के प्रति भक्ति- भावना को. जन्म देने के लिए आवदयक थी । भक्ति का प्रादुर्भाव अचानक नहीं होता । अनंत सौंदयें शक्ति और शील से संपन्न चरित्र के प्रत्यक्षीकरण से व्यवित का हृदय पहुले




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