पूर्व और पश्चिम कुछ विचार | Poorva Aur Paschim Kuch Vichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.15 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के प्वं १६ संस्कृति की उपस्थिति का पता चलता है जिसके पीछे ग्रवश्य ही भारत की धरती पर एक लम्बा इतिहास होना चाहिए जिसके प्रारम्भिक युग की मात्र घुंघली कल्पना ही की जा सकती है । प्रोफेसर चाइल्ड ने लिखा है मिस्र श्रौर बेबिलोनिया के समान भारत में भी ईसा से तीन हजार साल पहले श्रपनी एक सवेथा स्वतन्त्र व्यक्तित्वज्ालिनी सभ्यता थी जो अन्य सभ्यताओं की सिरमौर थी। श्रौर स्पष्टत उसकी जड़ें भारतीय धरती में गहराई तक चली गई हैं । वे भ्रागे लिखते हैं यह श्रभी भी जीवित है यह निस्सन्देह भारतीय है प्र श्राघुनिक भारतीय संस्कृति की श्राधारशिला है । इस संस्कृति का घनिष्ठ सम्बन्ध परिचिमी राष्ट्रों की संस्कृतियों के साथ था। १८ मोहनजोदड़ो ऐणड द इण्डस सिंविलाइज़ शन (१९३९१) खंड १ पृष्ठ १०६ । २. न्यू लाइट झॉन द मोस्ट ऐंशेंट ईस्ट ( १४३४ ) पृष्ठ २२० | प्रोफेसर फ्रक फुट ने लिखा है यह निर्विवाद है कि सभ्य संसार का निर्माण करनेवाली प्राचीनतम जटिल संस्कृति में यूनानियों के उत्थान से पहले भारत का प्रमुख भाग था 1? द इण्ड्स सिंविलाइज़ेशन ऐंड द नियर ईस्ट ऐनुअल बिंबिलियोग्राफी आफ इरिडियन आरार्कियोलॉजी खरणड ७ पृष्ठ १२ | डॉक्टर हाल का कथन है इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत प्राचीनतम मानव-संस्कति के केन्द्रों में से एक रहा होगा और यह कल्पना भी स्वाभाविक है कि पश्चिम को सभ्य बनाने के उद्देश्य से पू्वे से आनेत्राले विचित्र प्राणी जो न तो सेमेटिक थे और न आय भारत के दी निवासी थे । दम स्वयं देखते हैं कि सुमेरियाई लोग भारतीयों के कितने समान हैं । इस तथ्य से भी यही मालम होता है । ६७४। ३. मिस्र तर बेबिलोनिया की सम्यताश्रों तथा चीन और भारत की संस्कृतियों को झ्रल्फ्रेड वेबर प्रारम्भिक संस्कृति के जो अनेतिद्दासिक भी है और अंधविश्वासी भी उद /दृरण मानते हैं | इनकी तुलना वे करते हैं यूनानी-यहूदी श्राथार पर केवल पश्चिम में विकसित सहायक संस्कृतियों से । काल जेस्पसं इस विचार के विरोध में कहते हैं श्ाज हम जिस भारत और चीन को जानते हैं उनका जन्म रविंशयल युग में हु था उनकी संस्कृतियां प्रारम्भिक नहीं सद्दायक हैं । भारत श्र चीन दोनों ही पश्चिम के समान श्राध्यात्मिक गहराइयों में उतर सके थे । ऐसा मिस्र और बेबिलोनिया तथा भारत और चीन की आदिकालिन संस्कृतियों में सम्भव न हो सका था? काल जेस्पसे कृत द श्रोरिजिन ऐणड गोल श्फ हिस्टरी? अंगरेज़ी अनुवाद ( १९४३ ) पृष्ठ २७८। अ्रल्फे ड वेबर इस तथ्य से अनमिज्ञ नहीं हैं | वे लिखते हैं नौ सौ ईसापूव तक संसार में तीन संस्कृति-केन्द्रों-पश्चिमी एशियाई-यूनानी भारतीय तर चीनी--की स्थापना हो चुकी थी । उस समय से छः सो ईसापू्व तक तीनों केन्द्रों में लगभग आश्चयंजनक रूप से एक ही समय में और परस्पर स्वतन्त्र रूप सें घार्मिक एवं दार्शनिक खोजें हुई तथा उन विचारों और निष्कर्ष की दिशा सा्वभौमिकता की श्रोर थी । ज़रथूस्त्र यहूदी सिंद्धों यूनानी दाशनिंकों बुद्ध लाझत्से द्वारा विश्व की धार्मिक एवं दाशंलिक व्याख्याएं की गई तथा मानसिक प्रवृत्तियों का विकास हुष्प्रा । पारस्परिक झ्राध्यात्मिक प्रभावों के कारण ये और विकसित हुई नये ढांचे में ढलीं मिश्रित हुई पुनः जनमीं रूपान्तरित हुई या सुधरीं | ये ही विश्व के धार्मिक विश्वातों और
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