स्वामी दयानन्द का वैदिक स्वराज्य | Svaamii Dayaanand Kaa Vaidik Svaraajya

Svaamii Dayaanand Kaa Vaidik Svaraajya by चंद्रमणि विद्यालंकार - Chandramani Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १२ ) (९) मनुष्यों को योग्य है कि जो राज्य की रक्षा करने में समर्थ न होवे उस को राजा कभी न बनावे । १. ५४. 9 (१०) मनुष्यो को उचित है कि अधर्मी मूखजन को राज्य की रक्षा का अधिकार कदापि न देवें । १. ६०. ४ (११) मचुष्यो को उचित है कि पहिले परीक्षा किये हुए यूण विद्या युक्त धार्मिक सब का उपकार करने वाले ्राचीन पुरुष को सभा का अधिपति करे । तथा इस से विरुद्ध मजुष्य को स्वोकार नहों करे । १. ६१. २ (१९) है विद्वान राजन्‌ आप श्रेष्ठ गुण कर्म स्वभाव से युक्त हॉकर प्रज्ञा पालन में तत्पर सुशील और इत्दियों के जीतने वाले जब तक होंगे तब तक हम लोग आप को मानेंगे । ६. ४५. १० (१३ हे प्रजाजनो जो सम्पूण विद्या और श्रेष्ठ गुण कम स्वभाव वाला निरन्तर न्याय से प्रज्ञाओ के पालन में तत्पर होवे उसी को राज्ञा मानो दुसरे क्वद्राशय को नहीं । ६. ४५. १६ दूसरा वर्ग रु __.. (१) चोर अनेक प्रकार के होते हैं -- आरा का राज्य छनन कोई डाकू कोई कपट से हरने वाले वाल भाद चार है... कोई मोहित करके दूसरों के पदार्थों को ग्रहण करने वाले कोई रात में




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