मानवजाति का संघर्ष और प्रगति | Manav Jati Ka Sangarsh Aur Pragti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिछले महायुद्ध की समाप्ति पर ११ पुराने राजनीतिज्ञ करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे उतना भयंकर जनसंहार करने की इच्छा तो किसी की भी न थी, परन्तु परिस्थितियों ने उन्हें वह लड़ाई लड़ने को बाघित कर दिया । और यह भी कि यदि उनका बस चलता तो वे उस महा- युद्ध को और भी भयंकर बनाने का प्रयत्न करते, 'ओर भी अधिक जन तथा घन का संहार करते । संक्षेप में बात इतनी ही थी कि जर्मनी विश्व में अपना प्रंभुत्व बढ़ाना चाहता था व्यौर सित्रराट्र उसकी इस दुष्कल्पना की सज़ा उसे देना चाहते थे । कुछ समय के लिए मित्रराष्ट्रीं को अपने उक्त उद्देश्य में सफलता भी मिली । जमंनी हार गया । मित्रराष्ट्रों द्वारा प्रस्तावित सभी दण्ड जमंनी ने सिर झुका कर स्वीकार कर लिए; जैसे यह सब, एक राष्ट्र का यह दमन; सार्थक था । अभी २३ बरस ही तो बीते हैं और जमंनी 'झाज फिर से संसार की एक महान शक्ति बन कर इंग्लैण्ड, अंग्रेज़ी साम्राज्य और अमेरिका की सम्मिलित शक्ति के साथ लोहा लेने उठ खड़ा हुआ है । मतलब यही हुआ कि पिछले महायुद्ध से कोई उद्देश्य पूरा नहीं हुआ । न तो जमेन का और न मित्रराष्ट्रों का ही । जमंनी झपना साम्राज्य नहीं बढ़ा सका औओर मित्नरा्ट्र जमनी को सदा के लिये निश्चल नहीं बना सके । मानव-जाति ने बीसवीं सदी के प्रारम्भ सें एक महदाभयंकर परीक्षण किया था । उस परीक्षण से लाभ कुछ भी नहीं हुआ ौर कोन कह सकता है. कि वर्तमान सदायुद्ध में भाग लेने वाले एक भी देश को किसी तरह का लाभ




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