सतमी के बच्चे | Satmi Ke Bachhe
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.06 MB
कुल पष्ठ :
121
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रू सतमी के चने वची हुई भर सन्तान । लेकिन इन तीन शर्तान्दियों की बार पीडियो में सर कुछ-से-फुछ हो चुके थे । से उनके पास धरती थी न बन शोर ने उनका समाज में पहले के समान ग्यान ही था । नाझणों का बिरोधकर उन्होंने उन्हे ऐसा श्र बना लिया था कि अप श्राह्मणों का असुयायी होने पर भी बह उन्ह झमा न कर सकते थे । उदाने झपनी बेबसी को तुरन्त नहीं स्वीकार कर लिया लेकिन सैकडों वर्षों तक बागी बनकर छापा मारकर भी उन्होंने देख लिया कि झफेला चना भाड नहीं फोड सकता । तो थी पूर्वजों का उप्ण रक्त उनकी ससो में बह रहा था। जब छापने बचें को पेट की उयाला में नलते रेखते तब वे छोर न सह सफते थे | इसीलिए जीविका के लिए सजदूरी श्र सूअर पालने के छतिरिक उनसे से किन्हों-किन्हीं को चोरी का पेशा भी करना पडता था। ये बपने पूर्वेज को कितना भूल चुके थे यह इसी से रपष्र है कि मर-मातायें कनला की पुरानी गाथा सुनात बक्त अपने बची से कहती थीं-- पहुले इस कोट पर एक राजा रहता या उसकी बडी रानी ने एक पीसरा ( तालाब ) खुल्वाया जिसके गाम पर पोखरे का नाम बडी पडा । लहुरी ( छोटी ) शनी ने वह पोसरा खुर्वाया जिले ाज-कल लडुर्या कहते है। राजा की एक लौड़ी ने भी एक पोखस खुरगाया जो उसकी जाति के नाम पर लाउर कहा जाता है । वे यह न जानती थी कि कसैला का बह राजा उन्हीं का पूर्वेज था । शेरशादद छकबर जहाँगीर और शाहजहों के प्रशास्त शासन से भारत की--विशेषत उत्तरी भारत की--श्वस्था बहुत अच्छी थी । लूटपाट भर छोटे-छोटे सामन्तों की मारकाट रुक गई थी । यद्यपि छौरंगजेब से झाकबर की शान्ति ्ोर सहिष्णुता की नीति त्याग दी
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swati kumari
at 2020-12-03 16:41:08