पथेर पांचाली | Pather Panchali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पथेर पांचाली ७ गांव के एक गृहस्थ के यहां कोई पचास साल पहले डाका पड़ा था यह उसीकी कहानी है । इसके पहुंले यह कहानी बीसियों दफ़े कही जा चुकी थी पर बीच मैं कई दिनों का श्रतरा हो जाता है तो फिर से वह कहानी कहती पड़ती है । बात यह है कि बिटिया छोड़ती ही नहीं । इसके बाद वहू फुफी से तुकबन्दियां सुनती है । इत्दिरा पुरख़ित को उस ज़माने की बहुत-सी तुकवन्दियां याद थीं । जब उनकी उम्र कम थी तो वे घाट या रास्ते में अपनी सह्देलियों को कविताएं तथा तुकबरिदियां मुंहजबानी सुनाती थीं भ्ौर इन्दिरा पुरखिन की तारीफ के पुल बंध जाते थे उसके बाद इस प्रकार की धैयंवान्‌ श्रोता श्रौर कोई नहीं मिली । कहीं जंग न लग जाए इस डर से वह अपनी सारी कविताओं श्र तुकबन्दियों को श्राजकल प्रतिदिन सन्ध्या समय भती जी को सुनाने के लिए तयार रहती है । वह रस ले-लेकर सुनाती है ्रो ललिते चांपा कलिते एकटा कथा सुन से राधार घरे चोर ढुके से . यहां तक बोलकर बह रुक जाती थी श्रौर मुस्कराती हुई प्रती क्षा-भरी दृष्टि से भतीजी की श्रोर ताकती थी । बस बिटिया भी जोश के साथ पर्वपुति करती हुई कहती थी चुलो बांधा एक मिनसे वहू मि पर श्रकारण जोर डालकर नन्हे-से सिर को ताल देने के ढंग से झुका- कर पद का उच्चारण समाप्त करती थी । बिटिया को इसमें बहुत मज़ा झ्ाता था 1 फुफी भतीजी को भरुलावे में डालने के लिए ऐसी तुकबन्दियां सुनाकर पदपुर्ति के लिए छोड़ देती थी जिन्हें शायद दस-पन्द्रह दिन से सुनाया नहीं गया पर बिटिया ऐसी चालाक है कि वह झट पदपुत्ति कर देती है भ्रुलावे में नहीं आती । थोड़ी रात हो जाने पर जब मां खाने के लिए बुलाती है तो वह उठकर चल देती है ।




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