बंगला और उसका साहित्य | Bangla Aur Uska Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्४ ....बंगला श्रौर उसका साहित्य भूल होगी कि वह सीधी संस्कृत से निकलकर झाइ है । उदाहरण के लिए, डाक के वचन की यह माषा : ं बुन्द्ठा छुम्या एड़िव छुण्ड। न ... आगल्र देखे निवारिव तुण्ड। ., हो सकता है प्राप्त प्राकृत रचनाओं से यहाँ की तत्कालीन प्रात का साइश्य न हो, पर प्राकृत के किसी-न-किसी रूप के श्रन्तगंत वह आ्राती होंगी, ऐसा मानना श्रप्रासंगिक न होगा । हू अ प्राकृत के प्रकार साहित्य दपंण” में ग्राकृत के श्रंठारह भेदों की चर्चा श्राई है। भरत ने मागधी, श्रावन्ती, प्राची, शौरसेनी, श्रद्धसागधी, बाल्हीका और दाक्षिणात्या, इन सात प्रकार की प्राकृतों का उल्लेख किया हैं । “काव्या- दूश” मैं दंडी ने गौड़ देश की प्राकृत का स्पष्ट नाम लिया है की शौरसेनी च गोड़ी च लाटी चान्या च तादशी ! यातिं. प्राकृतसित्येव॑ ब्यवह्दारेषु॒ सन्निधिसू ॥। बंगला का श्रादि रूप--मागधी प्राकृत वररुचि ने मोटा-मोटी दो ही भाषाश्रों का उल्लेख किया हे--शौरसेनी वर मागधी । पहली पूव॑वर्त्ती पश्चिमी हिन्दी का नमूना है आर दूसरी बंगला उड़िया की पू्ववरत्ती भाषा का । इस प्रकार मागघधी प्राकृत मूलतः बंगला का प्राष्वीन रूप ठददरती है । झ्पम्रंश भाषा के विचार में सहामदोपाध्याय णौरीशंकर हीराचन्द जी ्ोका ने भी इस सागघी का जिक्र किया हैं | दाब्द-साम्य वास्तव में तो जानी-मानी ग्राकृत के किसी रूप से बंगला . की पूदा- वस्था का पूणातया सादश्य नहीं हैं; . किन्तु अनेक व्यवह्हत शब्द अवश्य मिलते हैं । बंगला भाषा श्रो साहित्य में डॉ० दिनेश'वन्द्र सेन ने मिलते- यू, 'मध्यकालीन भारतीय संस्कृति ।?




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