सनातन धर्म | Sanatan Dharm

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Sanatan Dharm  by इन्द्राणी पाठक - Indrani Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कह श्री गणेशाय नम दंड परम पूज्य श्रीोविय ब्द्म-निष्ठ श्रीयत्परम हंस परिन्रायकाचार्य निरज्न पीठाधीश्वर थी १०८ श्री स्वामीनुसिंद मिरी जी. मद्दाराज महददामसूडलेश्वर जी का हद घर्मोपदेश जिसे उन्होंने विशेष- घर्म का उपदेश देते समय दिया था-- का ग घमापदश भगवान थी कृप्ण ने गीता में सातवें श्रध्याय के दट्टाइसवे श्लोक में मक्त श्रजून से कहा दै एपां त्वंत गतं पाप जनानां पुण्य कमेंणामू 1 ते दर मोह निमु ता भजन्त मां दृढ़ न्रता ॥ श्र्थात्त जिन पुर्याष्मा्यों के पाप का झंत हो गया दै वे दन्दों के मोदद से छुटकर चढ़ श्रत होकर मेरी भक्ति फरते हैं । | गन भक्ति सफल होने के लिये पाप का नाश दोना मावश्यक दै । घम का श्लुप्ठान करने से ही पाप नप्ट होते द । यह घम कया दे 7 धर्म दो प्रकार का दै सामान्य धर्म और विशेष धर्म 1 विशेष धर्म मी दो श्रकार का दे--नारी धर्म थीर पुरुप घ्म 1 पुरुप घम के भी दो भेद हैं--वर्ख घर्म और ्ाश्रम घ्स । चर्ण घ्म के तुसार घर्मानुप्ठान करने से दी मनुष्य सिद्धि को प्राप्त दवोता दै । जा जिस चर्ण का है उसको उसी वर्ण-घर्म का पालन करना चादिए। दिन्दू जासि की चुनियाद वर्ण-घ्म पर ाशित दे । इस बुनियाद को




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