समुद्र के फेन | Samudra Ke Fen

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Book Image : समुद्र के फेन  - Samudra Ke Fen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समुद्र के फेन कठिन है। अच्छा है वह बटोही जो नहीं जानता कि जंगल में शेर चीतों के अतिरिक्त बटमार थी हैं छुटे रे थी हैं... और रागिनी ने पतीली उतार कर रख दी। एक बिवाह ब्ौर विवाह के बाद जैसे यात्री के कंधे पर पड़ा कम्बल जो छटकता रहता है मेला होता रइता है....कोई कहे कि मुसाफिर देख तो पीछे तू अपने ही निशान मिटा रहा है और छोट कर देखते समय कम्बल भी उठ जाता है। यात्री समकता है कि संसार उससे उपहद्ास कर रहा था क्योंकि संसार को अपनी हीनता का कितना विक्षोभ है अपदा्थे निर्वीयता (२) याद आ रहा है धीरे-धीरे एक बीता हुआ इतिहास जिसे इतिहास न कह कर विषाद्‌ की एक टेढ्ी-मेढ़ी रेखा कहा जाय तो कया कुछ अनुचित है ? दाल भी कितनी खराब है कि कमबख्त गढती ही नहीं । जाओ बाजार बनिया कहदेगा--इससे सस्ती तो है ही नहीं । रागिनी मुँकला उठी । एक घण्टा तो होने को आया । कोई हद है... फिर उबाल । जमीन की यह फसछ इतनी कठोर है फिर स्वयं वह ही केसे इतनी जल्दी दब गयी ? क्योंकि बह सनुष्य है रागिनी सुसकरायी । केसे बबरता है। लेकिन प्यार कहाँ है आजकल ? उफ केसी मिर्चों की भाँस उठ रही है। सौ बार सोच चुकी ३९




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