मार्क्स का दर्शन | Maaksra Kaa Drashan
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.45 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे ) इलिया के दादानिक पारमेनीडीज़् ज़ेनो--यूनान पर ईरानियों का कब्जा होने के बाद वहाँ के दार्शनिकों ने भागकर इटली के दक्षिण इलिया नामक स्थान में अपना अड्डा जमाया। पीथागोरसपंथियों ने यहीं से अपने दर्शन का प्रचार किया। इलिया के दार्षनिकों में दो मुख्य थे--पारमेनीडीज़ तथा जेनो । पारमेनीडीज़ का कहना था कि वस्तु न तो शून्य से पैदा होती है और न वह दून्य में विलीन होती है। इसलिए विरव कभी पैदा नहीं किया गया और न उसका कभी अन्त ही होगा। जेनो और पारमेनीडीज़ ने गति को भ्रमात्मक बताया । इसका प्रसिद्ध उदाहरण हे तीर की गति। गति के मार्ग में तीर स्थान-विशेष पर है भी और नहीं भी है । हे इसलिए कि वह स्थान-विशेष पर होकर गुज़रता है और नहीं हे इसलिए कि क्षण भर भी वह कहीं ठहर नहीं सकता । अर्थात् या तो तीर स्थान-विशेष पर गतिहीन है या वहाँ से होकर वह गुज़रता नहीं। उन्होंने परिणाम यह निकाला कि गति मिथ्या हैं। हेराक्लिटस--इलिया के दार्शनिकों के विरुद्ध हेराक्लिप्स ने अपने मत का प्रचार किया । यद्यपि उसने उनकी इस बात को मान लिया कि वस्तु का अस्तित्व अनन्त काल से हे उसने वस्तुओं के अनेकत्व और उनके अविराम परिवतंन पर जोर दिया। उसकी ऐसी धारणा थी कि सुष्टि-क्रिया का आवतंन चक्रस्वरूप है । प्रत्येक चक्र अग्नि से आरम्भ होता हे और आग्नि पर ही उसका अन्त होता है। उसका सबसे महत्त्व- पर्ण विचार यह हें कि प्राकृतिक घटनाओं की एक धारा है और यह एक सावेभौमिक बुद्धि के अस्तित्व को साबित करता हैं। यह सावं भौमिक बुद्धि या तो मूल पदार्थ के अन्दर हैं या इससे पृथक परन्तु इसके साथ ही साथ हे । अनाक्सागोरास और एम्पीडोक्लीज़ --इस बहुवाद को अनाक्सा- गोरास (ई० पू० ५००-४८८) और एम्पीडोक्लीज़ (ई० पू० ४६०- ३७०) ने और आगे बढ़ाय और इन्हीं की बुनियाद पर डोमोक्रीटस्
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