आवारा गर्द | Aawara Gard
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.16 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आवारागद् श्श् उस हँसी की आभा से जैसे दिप गई। मैं बोला नहीं बोल सका नहींउसी भाँति लड़खड़ाता हुआ ऊषा से अलोकित एकांत सड़क पर लुट़कता चला--जेसे स्वप्न से व्वल रहा हों । ओह कैसी अभूतपूर्व खुखद रात रहीं बह । [३] दो मास ऐसे बीत गए जैसे खेल हो गया हो । हाँ मेंने एक पेसा भी नहीं दिया । उस नारी के हृदय का मैंने संपूर्ण अध्ययन कर डाला | उसके प्रियतम के सपूण॑ खत पढ़ डाले । वह भीं डॉक्टर था सेरे-जेसा अवारागद नहीं प्रतिष्ठित सिविल्ल सजन | उसके बीवी थी वच्चे थे उसने इस प्रेम लतिका को पत्नी की हीं भॉति घर में रक््खा था | वह उसकी पत्नी के साथ खाती सोती रहती और पत्नी ही समभी जाती थी । उसने मुमसे एक- एक दिन की वातें कहीं । अपने छः वर्ष के स्वप्न-सुख के मधुर संरमरण कहती हुई वहद हँसी रोई और नाची उन्साद में आवे- शित होकर । में दिन-भर अपने सेठ के यहां रहता--कहना चाहिए सोता और सध्या होते ही भरूमता हुआ वहाँ आता जहाँ सुखद सेज गम खाना उन्माद्क मद्य सदुल नारी एक साथ ही उपस्थित थी- सब भमटों और खटपरटों से रहित । एक यत्र की भॉति में उस सुख-सागर में डूब जाता । खाता-पीता सिगरेट पीता और कहने न कहने योग्य क्या-क्या करता न करता । दिन बीतते गये और एक बोकः मेरे हृदय पर लदता गया । मेने उसे कभी कुछ नहीं दिया । अभागिनी असहाय नारी मुझे कहाँ से खिलाती-पिलाती है. ? कुछ देना तो होगा ही । परंतु कहाँ से ? में जानता था मेरा साथीं सेठ कहाँ रुपए-पे से रखता है । से सेठानी के जेबरों के रखने की जगह भी जानता था। सब सेरा विश्वास करते थे । मेरी रात की शैरहाज़री भी
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