शुभदा | Shubhada

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Shubhada by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुप़ा हद “क्या उसमें ऐसी बातें हूँ जो होती वाइब्रिल में महीं । “हैं फादर । फो नहीं सकता है । प्रमु ईसामसीह जी मिय्रामत तो होसी याइबिस ही है । 'पर उपनिपद्‌ तो प्रभु ईसामसीड़ से बहुत पुरानी है । 'धुरामी होन से कया हुआ । उनमें हांगे तो बही हु किस्से- बहानियाँ । उनमें 'कम्ट-पहानी नहीं हू उनमें ब्रह्म गा मे” बताया गया है। जो अध्षर है अगाषर है मीर अविनाधशों है । माई याष्ट मर प्यार तुम इतस श्रस्ते नौजवान होरर कैसे एमी वाहियात याले कर रह हा ! शमसोहनराय हँस पट । उम्हात बड़ा-- फादर मने अपने का कुएँ का मेंदर सहीं रहने दिया । में एवं वहते दरिया के समान हैं । जहाँ से जो जात मिलता है से सता हैं । मे कुरान पढ्ा बाइविस पता, फिर छिस्वत बै' सौपनाओ पहाड़ में जा कर भौटठपर्म मे रहस्य जाने । बेद-वदाम्ता भऔौर उपनिषद्‌ का मतने जिया, और भी बर एहा हैं। भाप भी ऐसा ही कीजिए पादर । सब पर्मो वा सष्या जान प्राप्त बीजिए 1” “सैत्ाम स जाग राष पर्मो वो भौर उननी गन्दी किताओं को भी । शुम फौरन भरमु ईसामसीहू भी शरण म्ाआ प्रो हमारी मैया का पार रिजिया है । पयरश मर सामस ध्सस भी महर्वपूण काम है। यद हमार शंका अपभपरारपूर्ण शौर निराणा भा बाल है । सारा इत भास्ठि हति और भरीतिपा * मंवर में फंसा है । सम उतर मानसिप परातछ बों उप्तत इ एने के लिए अंप्रेजी शिप्ता बा समपन कर रहा हैं । परत्तु




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