ब्रजभाषा काव्य में राधा | Brajbhasha Kavya Me Radha

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Brajbhasha Kavya Me Radha by डॉ. उषा पुरी - Dr. Usha Puri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस्दतवयावइक नगसिकए कपूय गए सी स्थिर लव र/शजमादानकाव्य में राभा (१) ऐतिहासिक तथ्य के रूप में राधा । (२) कर्पना के सहारे निर्मित राधा (धर्म अयवा साहित्य के क्षेत्र में) 1 है इनिहास-मरमियों हें तो राधा को स्फ्प्ट रूप से लोक-मानस की परिकल्पना को सजा प्रदान की है किस्‍्तु धरम के क्षेत्र में वैष्णव सम्प्रदायों में कण की भाँति राधा भी अनाि-अनन्त है । भक्तों की मास्यना है कि उसके उद्भव को बह्झ की भाँति ही खीजना असम्भव है किस्तु फिर भी अस्वेपकों से हार ते मानी । उन्होंने उसकी मूल एरिि- कल्पना के छोर को पकड़ने का प्रयास किया कुछ विद्वानों से राधा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक वेदमंत्र खोज सिक्नाला उस मंत्र में स्तोत्र राधानां पते पद मे राधा का वेद में अनुसन्धान किया । किन्तु उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि इस पद में राधा मष्द सजा नहीं बरनू धातु हैं । वैदिक युग में राधा ग्बद साम के रूप में कही भी प्राप्त सही होता । थर्ड शब्द घन अन्न पूजा आदि शब्दों का चोतक मात बनकर ही कही-कहीं प्रयुक्त हुआ है किसी तारी या देंवी के रूप में नहीं 1 पाइचात्य विद्वानों ने राधा के आगमन का एक दूसरा सकेत म्स्तुत किया है । उनके अचुमार पुरातन काल से सीरिया से आकर आभीर जाति में भारत को अपना निवास-स्थान बनाया । धीरे-घीरे आर्यों से उनकी मंत्री एवं प्रगाढून बढती गई । सहनवास ने दोनों को एक-टूसरे के समीप सा खड़ा किया और वे एक-दूसरे की रीतियों का अतुगमन करसे लगे है आभीरों की पुज्या देवी का नाम राधा था और उनका देवता था कान्हू । आरयों ने नित्य-कृष्ण से उनके देव का तादात्म्य करके अपने आराध्यदेव की सृष्टि की । कुछ समय परचातूं आार्य-साहित्य में राधा ने भी प्रचेद् पा लिया । यहीं कारण हू कि प्राचीन प्रस्थों में राधा का उल्लेख नहीं मिलता । इस मंत्र की स्थापना में थी भडारकर जैसे हू. देखिये ऋगषवेद न ई1३०[२९ | २. दाखिये राधावल्लम सम्प्रदाय--लिडाएत भर साहित्य पु० १3४ ) द््क भर डा की ८ बैष्णावियस शॉंबिंग्म एल्ड माइलर रिलीजियस सिस्टम्सर--डों० भडारकर पुर ने




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