मुजरिम हाज़िर है | Muzrim Hazir Hai

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Muzrim Hazir Hai by विमल मित्र - Vimal Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9620४ न सिर्फ नायक सदानन्द में यल्कि उपन्यास में तमाम सभी चित्रों और घटनाओं में सूदम रूप से मौजूद है । तो क्या सिर्फ कौतुक-विद्रूप से इस युग-संकट के अंघकार को दिखाने के लिए ही पाजिटिव गुड मैन के माध्यम का उपयोग किया जाता है ? नहीं । स्तमसो मा ज्योत्ति्गमय --उपनिपद्‌ की यह प्रार्थना ही लेखक की शिल्प-प्रेरणा है। पाज़िटिव गुड मैन इसी प्रकार का प्रदीप है । युग-संकट में ही इनका आविर्भाव होता है । ये आते हैं तभी संकट का सामग्रिक रूप हमारे सामने प्रकट होता है हम सिहर उठते है प्रकादा में पहुंचने की प्रार्थना में हम घुटना टेक देते हैं। चह्दी तो हमारा परित्राण है 1 ससुर की लालसा को घिक्कारकर उनकी मर्यादा के मुखौटे को खीचकर जनता के सामने पैरों से रौदकर नयनतारा सदा के लिए अपने पत्ति को घर छोड़कर चली ज़रूर भाई थी पर तभीसे उसे दो परस्पर विरोधी प्रवणत्ता का शिकार होना पड़ा था । बीमार सदानन्द को रास्ते से उठा लाकर उसने जो-जान देकर उसकी सेवा-सुश्रूपा की और उसके चलते मिलनेवाती तांघ- नाओं को सहकर भी उसे भला-चंगा किया अयच उस समय वह निलिलेश की पत्नी थी । निखिलेश ने इतने दिनों में उसे पढ़ाया-लिखाया दफ्तर में उसे नौकरी दिलाई । निसिलेश ने उसे आड़े वक्‍त में बचाया था । इसीलिए बह निखिलेश को चाहती थी । परन्तु सदानन्द को ? सदानन्द ने अप्रत्याशित रूप से नयनतारा को बहुत बड़ी रकम जो दी थी क्या इसलिए कि उसने बीमारी में उसको तीमारदारी की थी ? या कि इस- लिए कि उसने नयनतारा को बिना कसूर के छोड़ दिया था ? या कि ईश्वर ने दतान के सामने फाउस्ट की वाज़ी रक्खी थी । शैतान ने कहां था घरती को मैंने घर-द्वार घन-दौलत नारी-संपद और खिताव-खैरात देकर दखल कर लिया है। व्यभिचार युद्ध और महामारी फैलाकर सबको ऐसा काबू कर रखा है कि सभी पोड़शोपचार से मेरी प्रजा कर रहे है लिहासा यह दुनियादारी मेरी है । ईश्वर ने कहा तुम अगर पवित्रड फाउस्ट की भआाह्मा को भी कब्जा कर ले सको उसके कलेजे में जलनेव आत्मा को भी कब्जा कर ले सको उसके कलेजे में जलने वाली प्रेम की द शिखा को बुमा दे सको मैं तभी मानूंगा कि यह पृथ्वी तुम्हारी है । शो ने फाउस्ट की आत्मा को खरीद लिया था उन्हें भोग-सुख तथा दुनिय सारे विललास-व्यसनों में डुवाकर रख सका था । मगर फाउस्ट मे अपने श्र की उस प्रेम-शिखा को हरगिज़ बुमने नहीं दिया । इसीलिए अंत में फाः की ही जीत हुई । शैवान इस दुनिया का एकछय अधिपति नहीं वन सका दायद हो कि फाउस्ट के पदिय्र प्रेम की उसी शिखा को दोनों मांखों दृष्टि-प्रदीप में रखकर दुनिया के अंधेरे को पा-पा करके पार करके सदा भी अपनी मंजिल की ओर जा रहा था । ओर उबर कलकत्ता के अभिर मुहल्ले में थिएटर रोड के एक सुरम्य सो में यों ही मिल गए विपुल अं खरीदे हुए सुख की कुप्ठव्याधि से ग्रस्त थी नयनतारा 1 15 ही




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