भारतीय क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास | Bhartiya Krantikaari Aandolan Ka Itihaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्ान्तिकारो झान्दोलन का सुत्रपात ् सजा देनी चाही । इन जमींदारों ने वहात्री किसानों पर एक विशेष कर लगाना चाहा । इस पर तीतू मियाँ के नेतृत्व में इच्छामति नदी के किनारे एक विद्रोह के होने का पता मिलता है । दारीयवतुल्ला श्रौर दुद्ड मियाँ--फरोदपुर में भी वहाबी नेता दारीयतुल्ला तथा उनके पुत्र दुद्द मियाँ के नेतृत्व में एक विद्रोही गिरोह खड़ा हो गया था । इस गिरोह का नाम फ्ज था । तीतु मियाँ तथा दारीयतुल्ला के नेतृत्व में जो आन्दोलन हुए उन्होंने मिलकर विद्रोह श्रान्दोलन को पुष्ट किया । कई जगह पर सरकारी फौजों श्रौर इन लोगों में खंड युद्ध हुए । कहा जाता है कि कुछ समय के लिये चौबीस परगना नदिया झ्ौर फरीदपुर पर इनका दबदबा इतना छा गया था कि इन स्थानों में भ्रंग्रेजी राज्य खतम-सा हो गया था । इस ग्रान्दो- लन का विस्तृत इतिहास भ्रभी लिखा नहीं गया है । १८१५७ ई० में जो विद्रोह हुप्ना उसको बहुत से लोग भारतीय स्वाधीनता का युद्ध मानने से इनकार करते हैं । इस बात में तो कोई सन्देह नहीं कि जिन दलों के प्रयत्नों के फलस्वरूप गदर की लपट फेल गयी थी उन सबका एक उद्देश्य इतना ही होने पर भी कि हिन्दुस्तान से फिरड़ियों के पैर उखड़ जायें उन सब के अन्तिम ध्येय में कोई समता नहीं थी । कोई कुछ चाहता था कोई कुछ । गदर का सफल होना प्रगतिशीलता के हक में भ्रच्छा होता या बुरा इसमें भी सन्देह प्रकट किया जाता है क्योंकि गदर सफल होने का झ्रथे होता कि पाइचात्य देवों में पूँजीवादी क्रांतियाँ होने पर जिस सामन्तवाद का पैर उखड़ रहा था उसकी भारत में पु रथापना होती पर उसकी ज्यों की त्यों पुनः स्थापना तो किसी भी श्रवस्था में संभव नहीं थी । इसके साथ ही यह भी जोर के साथ नहीं कहां जा सकता कि देशी सामन्तवाद देशी पूंजीवाद के सामने बहुत दिन टिकता क्योंकि देशी पूँजीवाद को भी पनपना ही था । फिर यह बात भी. है कि विद्रोह के पीछे प्रतिक्रियावादी तथा देश को सामस्तवादी यृूग में लौटा ले जानेवाली जो भावनाएं थीं वे कुछ भी हों (8पाुं००४७) कारण-रूप थीं उनका (0००४७) कार्य-रूप परिणाम बहुत सम्भव है श्र होती ही इतिहास में इसके सेकड़ों उदाहरण हैं कि किसी श्रान्दोलन के संचालकों के _ सन की कारण-रूप भावना ज्ौर होते हुए भी एक श्रान्दोलत के कार्ये-रूप परि-




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