ग़दर का इतिहास | Gadar Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39.48 MB
कुल पष्ठ :
767
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पण्डित शिवनारायण दिवेदी - Pandit Shivnarayan Divedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला भष्याय थ््ह्छ नानासाइबकों देनेके छिये तैयांर थें। कहा जाता है दि यात्रा करते हुए जब नानासाहन ठखनऊ पहुंचे तब वहांके राजकर्चारियोंने उनपर हर तरदसे विश्वास-श्वापन किया | पर जब नानासाइबन चहांसे एकाएक चले जाये तब सर ज्ञान लारेंसके चिचमें सब्देह छुआ |. इसी कारण उन्होंने द्ानपुरके प्रधान सेनापतिकों शी सावधान होनेके लिये लिखा । हेनरी छार्सिव्मी विलकषण बुद्धिकी जितनी प्रशंसा की जाद वह बस है । # जो कुछ हो कानपुरके कलेक्टर नानासाहइबके गुणों विश्वासी थे ।. बाजीराव रुवर्गवासी होनेके बादू- से नानासाइबने किसी प्रकारके अधिश्वासका परिचय नहीं दिया था। लाडं डलहौजीकी संकीणं नीतिसे उन्हें सामिंक दुख हुआ था पर उनका खयाल यहीं था कि समय पाकर उत्रेज्ोॉंकी यह नीति बदल जायगी । वे समकते थे कि जिन्हें वे खुश करनेकी कोशिश कार रहे हैं थे एव दिन खुश दोंगे और एक न एक दिन उनकी पऐ शन फिर जारी होगी यही सीकर वे निश्चिन्त गौर सन्तुष्ट थे । यदि अजीमुल्ठादी कौतूदलभरी यूरोपकी बातोंसे सुग्घ न होते या अपने बचपनके सित्नोंकी मंत्रणामं न आते तो संभव था दि वे अपने गौरव- नस शूट न होते । कानपुर थी उंत्रे ज़ोंकि खुनसे ना रंगा जातों | व्हानछुरदरी गंगा भी असहाय खियों और निर्फ्ताथ बालकोंके खून कलुषित न होती । _.. ऊ दफेणिप फिफ्तिमोल्ड का एपकर हि. 32... न
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