गदर का इतिहास | Gadar ka itihas

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Gadar ka itihas  by पण्डित शिवनारायण दिवेदी - Pandit Shivnarayan Divedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला -अध्याय ्ह पश्चावकी उन्नति होने ठगी । इसी प्रकार -शास्तिसे सन '.१८४७ का वसन्तकाल वीत गया । जो जाःलसा 'सेनाए सचू ८४७ एक दिन अशान्तिकी आग उछाजती थीं ये शान्तिसे अपने दिन बिताने लगीं । रेज़ीडेंटसे अपने विज्ञापनमें प्रकाशित दिया कि “जो खाठसा सेनाए' एक दिन अंत्रेज़ी शासनके शयका कारण थीं वे शान्तिके साथ जमीन जोतवी भौर आनन्द्से अपना समय बिताती हैं। “ऐसी दुशामें भी पज्ञाबंका रेजीडेंट अपने कत्तव्यसे शिथिल न था । वह और भी अधिक पश्ञाबब्दी उन्नतिमें भाग ले रहा था आर चारों ओर * . शान्तिव्ी व्यवस्था करनेमें ठगा हुआ था । ' महारानी ज़िन्दां मानवती, वीर नारी थी ।-चहद इस वातकों उंच्छी तरदद सम चुकी थी कि मेरा राज्य सात समुद्र' पारके विदेशियोंके पेरॉंपर लोट रद्दा है । उसे यह सदन नहीं * होता था कि परदेशी उसके राज्यपर शासन करें । जिन्दां समझ रदी थी कि त्रिदिश गवंनेमेंटके लोभी 'नयन 'पंजाबपर .पड़ रहे हैं? इससे चुत जल्दी- यह्द राज्य ब्रिरिशि 'सिंदके शिकार दो जायगा । उसका यह ख्याल बहुत कुछ सच दोता दिलाई दिया । ब्रिटिश गवर्नमेंटने उसके प्यारे बेटे दिलीपसिंदको कठ- पुतली यनानेमें कोई कसर न रक्‍खी । परदेशियोंकी यह ' अनधिकार चर्चा वीरमाता ज़िन्दांसे सदन न दुई। बेइमान कद कर हद अंप्रज्ञ जातिसे घृणा करने ठगी । कोमल नारी- इृद्य भपमानकी उवालासे काला विष उगलने लगा ।




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