रत्ना परीक्षा | Ratna Pariksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ४ द्वारा दादासाइव श्रीजिनकुशलसूरिजी के नेतृत्व में निकले हुए महातीर्थ शत्रुय के सघ में सम्मिलित हुए थे । ठक्‍्कुर फेरू की प्राकृत रक्तपरीक्षा को हम अनुवाद सहित इस अन्थ में दे रहे हैं। प० भगवानदासजी प्रकाशित वास्तुसार प्रकरण में रत्वपरीक्षा की गाथा २३ से १२७ तक छुपी है जिसके बीच की ६१ से ११४ तक की गाथाएं धावोत्पत्ति की हैं पाठ मेद भी प्रचुर है । इसके अनुसार रल्नपरीक्षा अन्थ १२७ गाथाओं का होता है पर इसकी वीच की बहुत सी गाथाए छूट गई हैं और १३२ गाथाए दोती हैं । पाठान्तरों को यथास्थान गाथांक सदिति कोष्टक में दे दिया गया है । इसके पश्चात खरतर गच्छीय सागरचन्द्रसूरि शाखा के दर्शनलाभ गणि शिष्य मूनि तत्वकुमार कृत रत्नपरीक्षा ( स० १८४४ रचित ) फिर अचल गच्छीय अमरसागरसूरि शिष्य वाचक रत्नशेखर कृत रत्नपरीक्षा मी दी गई है । परिशिष्ट में नवरत्न परीक्षा) मोहरा परीक्षा (राजस्थानी गया में ) देकर कझुचिम रत्नों और नवरत्नरस का नोट दिया गया है| हमारी प्रार्थना पर सुप्रसिद्ध विद्वान डा० मोततीचन्दजी ने कृपा करके ठक्कुर फेरू की रत्नपरीक्षा का परिचय बड़े ही परिधम पूर्वक और विस्तार से लिख सेजा था. जिसे हमने रलपरीक्षादि सस-ग्रन्थ सग्रह में प्रकाशित करवा दिया था पर हिन्दी पाठकों को विशेष लाम मिले इस दृष्टिकोण से दम उसे इस ग्रन्थ में भी दे रहे हैं । हीरे की उत्पत्ति स्थानों में बुद्धमट्ट मानसोल्लास रत्नसम्रह और ठकक्‍्कुर फेरू की रस्नपरीक्षा में जिस मातग स्थान का उल्लेख है इसका ठीक पता नहीं चलता पर बेलारी जिले के हम्पी स्थान में रत्नकूट में से सलग्न मातग पर्वत की और सकेत हो तो




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