शब्द - रसायन | Shabad Rasayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.83 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पंडित देवदत्त शास्त्री जी का जन्म भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के कौशांबी जनपद स्थित महेवाघाट क्षेत्रान्तर्गत रानीपुर नामक ग्राम में हुआ था।
इनका गोत्र घृतकौशिक गोत्र था, एवं इनके वंश का नाम कुशहरा था।
यह विद्वान कुल के वंशज सिद्ध हुए क्योंकि इनका कुल पूर्व रुप से ही अत्यंत संस्कृतज्ञ एवं वेदपाठी ब्राह्मण थे, जिनमें पं भवानीदत्त मिश्र, पं देवीदत्त मिश्र, पं शिवदत्त (सिद्ध बाबा) , इनके (देवदत्त शास्त्री)पिता पं ईशदत्त मिश्र और भाई डा. हरिहर प्रसाद मिश्र उल्लेखनीय हैं।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१०) प्रस्तुत हुआ है । सूरदास के दो चार पद उदाहरण स्वरूप लेकर इस बात को और सुथरे ढंग से रखा जा सकता है । झतिहि अरुन हरि नैन तिहारे सानहु रति-रस भये रँँगमगे करत केलि पिय पलक न पारे मंद-मंद डोलत संकित से राजत मध्य सनोहर तारे मनहूँ कमल सम्पुट महँ बीघे उडि न सकत चंचल लि बारे भालमलात रति-रैन जनावत अति रसमत्त श्रसत अनियारे मानहु सकल जगत जीतन को कास-बान सरसान संबारे भटपटात अलसात पलकन्पुट मूँदत कबहूँ न करत उचधघारे मनहूँ मुदिति मरकत मनि अंगन खेलत खंजरीट चटकारें बार-बार अवलोकि कनखि्यँंनि कपट नेह सन हृरत हमारे सूर स्याम सुखदायक रोचन दुखसोचन लोचन रतनारे । यह उक्ति मध्या घीरा की कहीं जा सकती है । अनुभावों का बहुत ही सुन्दर वणुन है। इसमे और रीति-कालीन कवियों में भेद इतना है कि यह नियमानुसार नहीं लिखा गया है. वरन प्रसंग का स्वाभाविक रीति से प्रकृति के झनुंकूल अनुभावों को लेकर एक अनुपम चित्र सामने खड़ा कर दिया गया है । आजु हरि रैनि उनींदे आये अंजन अधर ललाट महावर नैन तमोर खबाये बिनु शुन माल बिराजत उर पर चन्दन खौरि लगाये मगन देह सिरपाठा लटपटी जावक रंग रँगाये हृदय सुभग नख-रेख बिराजत कंकन पीठि बनाये सूरदास प्रभु यह अचंभव तीन तिलक कहूँ पाये ।
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