श्री स्वानुभवदर्पण | Shree Swanubhavdarpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २५ )
दूध दही में छत छिपा है पर चिकनाई से जाना नाता हे
वा पत्थर में अग्नि है सो ठांकी लगाने से जानी जाती
| है। तैसे ही शरीर में आत्मा है. सो देखन जानन क्रिया
* से जाना जाता है अ्रथा सुबर्ण चांदी खान से मल सहित
निकलती है तिनको शुद्ध करने से जानते हैं । सैसे दी शरीर
में जीव है सो उपयोग से जानते हैं। वह जीव स्फटिकसा
निर्मल प्रकाशित और अग्निसा कर्म-बन भस्म करने
वाला है ।
| (५७ दोहा )
देह आत्मा भिन्न इस, ज्यों सुबर्ण आकाश |
पावे केवल ज्ञान जिय, तब निज फरे प्रकाश ॥
देह और आत्मा मिन्र २ हैं, जैसे सुवर्ण अरु आकाश
मिन्न २ हैं। जब जीव केवल ज्ञान को प्रकाश करता है
तब प्रगट जाना नाता हे ।
( ५८ दोहा )
यथा व्योम निलेंप शुचि, त्यों शुचि आत्म देश |
पर जड़ अम्बर आत्मा, चेतन है परमेश ॥ ,
जैसे आकाश लेप रहित निर्मल शुद्ध है, तैसे ही
आत्मा उपाधि रहित शुद्ध है। परन्तु आकाश अचेतन है _
ओर आत्मा चेतन्य है, परम ऐश्वय युक्क हे | ना
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