श्री स्वानुभवदर्पण | Shree Swanubhavdarpan

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Shree Swanubhavdarpan by ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २५ ) दूध दही में छत छिपा है पर चिकनाई से जाना नाता हे वा पत्थर में अग्नि है सो ठांकी लगाने से जानी जाती | है। तैसे ही शरीर में आत्मा है. सो देखन जानन क्रिया * से जाना जाता है अ्रथा सुबर्ण चांदी खान से मल सहित निकलती है तिनको शुद्ध करने से जानते हैं । सैसे दी शरीर में जीव है सो उपयोग से जानते हैं। वह जीव स्फटिकसा निर्मल प्रकाशित और अग्निसा कर्म-बन भस्म करने वाला है । | (५७ दोहा ) देह आत्मा भिन्न इस, ज्यों सुबर्ण आकाश | पावे केवल ज्ञान जिय, तब निज फरे प्रकाश ॥ देह और आत्मा मिन्र २ हैं, जैसे सुवर्ण अरु आकाश मिन्न २ हैं। जब जीव केवल ज्ञान को प्रकाश करता है तब प्रगट जाना नाता हे । ( ५८ दोहा ) यथा व्योम निलेंप शुचि, त्यों शुचि आत्म देश | पर जड़ अम्बर आत्मा, चेतन है परमेश ॥ , जैसे आकाश लेप रहित निर्मल शुद्ध है, तैसे ही आत्मा उपाधि रहित शुद्ध है। परन्तु आकाश अचेतन है _ ओर आत्मा चेतन्य है, परम ऐश्वय युक्क हे | ना




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