अथ धर्मानुशासनम | Shree Dharmanushasanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२१)
न्यूनाधिकत्व॑ तु सतिभेदात्ू ॥२७॥
यक्त्विदं संप्रदायेषु मतेषु च निखिलेषु धमंस्प
तारतम्थ॑ धर्मरहस्पाभिज्नैविंद्नद्धिरवलोक्यते तनत्नाचा-
योणां तदलुयाथिनाँ च सतिभेद एवं कारणं यस्यप
धमोचायेस्थ यादशी स्थूला खुक्ष्मा वा वुद्धिरभूत्
तेन ताहशमेव मं प्रचारितं ततो न समानः स्ेतन्र
घमेलास इति॥ २७ ॥
स्यूनाधिकत्व॑ तु मतिभेदात्। और जो संप्रदायोंमें सर्व
मतोंमें धमका स्यूनाधिक भाव धर्मके रहस्य जाननेहारे
विद्वानोंकों प्रतीत होवे है सो तो तिन संग्रदायोंके
आचारय और तिनके शिष्योंकी चुद्धिके भेदसे हया है
१] ( सूः क्र रे
अथात् जिस आचायेकी स्थूल वा सूक्ष्म जेसी बुद्धि थी
उसने उसी प्रकारका मतप्रचार कर दिया यातें सब
संप्रदायोंमं धमका राम बराबर नहि समझना चहिये
इति ॥ २७७
कचिद्वेपरीत्य चास्मात् ॥ २८॥
अस्मादुक्तादाचायमतिभेदादेव क्चित् विपरीत-
त्वसपि जात॑ तेन केचिद्धमंसपि धम्मेत्वेन सन््यमाना-
स्तदनुयायिनस्तन्न प्रचृत्ता इति ॥ २८॥
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