अथ धर्मानुशासनम | Shree Dharmanushasanam

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Shree Dharmanushasanam by ब्रह्मानन्द - Brahmanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२१) न्यूनाधिकत्व॑ तु सतिभेदात्‌ू ॥२७॥ यक्त्विदं संप्रदायेषु मतेषु च निखिलेषु धमंस्प तारतम्थ॑ धर्मरहस्पाभिज्नैविंद्नद्धिरवलोक्यते तनत्नाचा- योणां तदलुयाथिनाँ च सतिभेद एवं कारणं यस्यप धमोचायेस्थ यादशी स्थूला खुक्ष्मा वा वुद्धिरभूत्‌ तेन ताहशमेव मं प्रचारितं ततो न समानः स्ेतन्र घमेलास इति॥ २७ ॥ स्यूनाधिकत्व॑ तु मतिभेदात्‌। और जो संप्रदायोंमें सर्व मतोंमें धमका स्यूनाधिक भाव धर्मके रहस्य जाननेहारे विद्वानोंकों प्रतीत होवे है सो तो तिन संग्रदायोंके आचारय और तिनके शिष्योंकी चुद्धिके भेदसे हया है १] ( सूः क्र रे अथात्‌ जिस आचायेकी स्थूल वा सूक्ष्म जेसी बुद्धि थी उसने उसी प्रकारका मतप्रचार कर दिया यातें सब संप्रदायोंमं धमका राम बराबर नहि समझना चहिये इति ॥ २७७ कचिद्वेपरीत्य चास्मात्‌ ॥ २८॥ अस्मादुक्तादाचायमतिभेदादेव क्चित्‌ विपरीत- त्वसपि जात॑ तेन केचिद्धमंसपि धम्मेत्वेन सन्‍्यमाना- स्तदनुयायिनस्तन्न प्रचृत्ता इति ॥ २८॥




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