श्री धर्म कल्पद्रुम भाग 2 | Shri Dharma Kalpadruma Bhag 2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31.18 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७८ श्रीसत्याथविवेक । और दूसरी ओर ब्राह्मणधस्पे को यथावत् पालन करने में समथे न होफर झकृतकार्य होगा । और अन्य योर जिस जाति का राजा राजधम्मे से पतित होगा उसकी प्रजा उच्छह्डल व राजद्रोदी बन जायगी और क्रमशः वह राज्य शत्रओो के झघीन होकर पराधीन हो जायगा । इस विचार से यही सिद्ध हुआ कि क्षत्रियों के लिये शात्रधम्मे विशेष घम्मे हे और ब्राह्मणों के लिये ब्राह्मण घम्म दिशेष घस्मे है । ओर ब्राह्मणघम्पे प्रशंसनीय व उत्तम होने पर भी क्षत्रिय जाति के लिये वे सब विशेष घम्म अघम्मेरूप है । वणघम्पे का एक दृष्टान्त दिया गया । झब्र आश्रमघम्म का एक इ्टान््त दिया जाता है। संन्यास श्रम का विशेष घम्प अन्य अश्रमों के लिये पूजनीय ओर अति प्रशंसनीय हे इसमें सन्देह नहीं । ग्दस्थाश्रम प्रहतिमूलक ओर संन्यासा- भ्रम निद्दुचिमूलक होने के कारण संन्यासाश्रम गइस्थ के लिये पूजनीय है इसमें भी सन्देद नहीं है । परन्तु जो ग्रदस्थ संन्पासाश्रम का अधिकारी नहीं है जिसमें विषयवात्ना बनी हुई है वह यदि अपने संन्यासी गुरुकी नकल करने लगे तो अवश्य ही पतित होजायगा । कामिनी व काश्न का एकदम त्याग कर देना केबल अध्यात्मशाख का चिन्तन करना और सब समय जगत-कल्याण में ही मन लगाना ये सन्यासाश्रम के प्रिशेष धर्म्मो में से है । दूसरी ओर धम्मे से धन कमाना घन का सश्य रखना ख्रीसेवा करना अथेशाख्र का भी चिन्तन करना सबसे पहले अपने स्वजनों के पालन व उपकार करने का यत्र करना इत्यादि गहस्थ के बि- शेष धम्म के प्रधान अड् हैं । ये सब ग्रहस्थ के विशेष घम्पे संन्यासाश्रम के विशेष धर्म्मों से सम्पूर्ण विरुद्ध हैं । झतः ग्रहस्थ शिष्प यदि अपनी झ- योग्य दूशा में संन्यासी गुरुझी नकल करने लगे तो अवश्य ही धम्मच्युत होगा । अथेशाख्र का अभ्यास न करने से अथेसंग्रद नहीं कर सकेग। अथेसंग्रद नहीं करने से ग्रहस्थ।श्रम का घम्मे पालन नहीं कर सकेगा और स्वघम्म के साथ खीसेवा झोर आत्मीय जनों का मतिपालन न करने से उनका झसन्तोषभाजन व अपने कत्तव्य से च्युत होकर अधम्पी बन जायगा। इससे यह सिद्ध हुआ कि संन्पासपम्मे अति उत्तप व प्रशंसनीय होने पर भी अनधिकारी झदस्थ के लिये वह अवम्मरूप दे । इसी रीति पर खीधम्प व परुषघम्प भी उदाहरणरूपसे विचारने योग्य हैं । मीमांसादशेन में पुरुष के
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