ओम एकादशोपनिषत्संग्रह | Om Ekadashopanishatsangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
277 MB
कुल पष्ठ :
452
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जिंस अल्पब॒ुद्धिमान् पुरुष के घर में ने खाता हुआ बअहावेत्ता बैसता है उसकी
आशा को, प्रतीक्षा को, सेगत को, सच्ची वाणी को, इश और पूत्ते को, पुत्र ओर पशु ०० हु
इन सबको वह नंश कर देता हे। का | 7
अप्राप्त पदाये की प्राप्ति की इच्छा को तथा सम्भावना को आशा कहा जाता
है। वस्तु तथा जन के मिछाय की कामना को पतीक्षा कहते हैं | सत्संगति, मे जनों...
का समागम संगत कहा गया है | सत्य-बचन और सत्य-घारण को सूचत कहा है।..
_ जप, सिमरन, स्वाध्याय, पूजन, आराधन, तथा ध्यान आदि आ त्मक कर्मो का नाम.
...._इष्ट है। दान दक्षिणा देना, कूप तालाब छगाना तथा आश्रम आदि निर्माण करना,
: 4 लोकोपकार की संस्थाएं स्थापित करता ओर जनहित में भाग लेना ये कर्म पूर्त कहे...
.... जाते हैं। इत्यादि सभी शुभ कर्म उस मनुष्य के तरष्ट हो जाते हैं जिस के घर में...
..._निराहार निरन्न अतिथि रहे। हा न प,
तिस्लो रात्ीयदवांत्सीगहे मेउ्नश्न ब्द्मत्नतिथिनर्मस्य!
नमस्तेउस्तुं ब्रेहन् ! ध्वेति मे5रतुं, तस्मात प्रति जीव वरान हेणीप्व॥२॥
इस प्रकार सोचता हुआ घमेभीरु वैवस्वत नचिकेता के पास जाकर बोछा हे...
.._ ब्रह्मवित् ! तू अतिथि पूजनीय है । जो मेरे घर॑ में तू नखातां हुआ तीर्न शांत रेंहा है उसके...
.. बदले में तू तीने वर मांगे । ब्रह्म॑वित् ! तुझे नमस्कार हो। मेरे। कल्याण हो 21005]
शान्तेंसंकरपः सुमना यर्थां स्याद्रीतर्मन्युगोतमों माठमि मत्यों ।
तत्पर माम्राभि बदेत प्रतीत एतेव अयाएी प्रथम बेर हंणे ॥१०॥
रे वेबस्वबत के आइर को पाकर नचिकेता ने कहा, हे वेवस्थत ! मेश पिता गौतम हा |
«.._ शांतसकट्प और प्रसन्नगन जैसे दोबे ऐसा आशीर्वाद दीजिए | मेरे प्रति मेश पिता...
.. क्रोधरहित हो | तेरे भेजने पर मुंह को जाने ओर मुझ से संलाप करे। तीनों बरोंमें...
रा यह पहला बेर में मांगता है । पा पा व
- यथा पुरस्ताद भविता प्तीर्त ओदालकिराईगिर्मलसष्ठ! । आम,
सुख रात्री शयिता वीतमन्युस्तवां ददशिवॉन मत्युसुखात प्रमक्तम॥१२१॥
हे वेबस्वत ने कहा, तुझे मेरे ढारा भेजने पर ओद्ालकि आरुणि जैसे पईलेथा
; पा वैसा प्रसर्न्न होगाँ। खुर्ख से रात को सोरयगा | क्रोचरदित हो जायगा। मसेत्यु के झुख
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