अतीत क विसर्जन अनागत क स्वागत | Ateet Ka Visarjan Anagat Ka Swagat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अणुत्रत की क्रातिकारी पृष्ठभूमि १७ नयी धारा के उद्गम अणुन्नत का समुचित मूल्याकन हो और इसी दृष्टि से उसके विगत करत त्व और भावी सभावनाओ पर एक तटस्थ किन्तु आलोचनात्मक अध्ययत किया जाए ) चरित्र-निर्माण का आन्दोलन अणुत्रत एक आन्दोलन है, इसलिए यह गत्यात्मक है। अपुन्नत चरित्र-मिर्माण की प्रक्रिया है, इसलिए इसमे स्थितिपालकता भी है। इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि मे एक तीतिमान पीढी के निर्माण का सपना था । यह स्वप्न देखा था हमने सन्‌ १६४६, छापर चातुर्मास मे । उस समय भारत स्वतत्र हुआ था । भारतीय लोग स्वतत्रता की खुशी मे झूम रहे थे । उस समय उनके सामने कोई लक्ष्य नही था, दिशा नही थी, महत्त्वाकाक्षा नही थी और साधव-सामग्री भी चही थी, जिसके हारा वे बेहतर जिन्दगी जीने की बात प्तोच सके । उस समय एक ऐसे सचेतन प्रयास की जरूरत थी, जो व्यक्ति-व्यक्ति को मानसिक रूप से स्वायत्तता की अनुभूति देकर अपनी खोयी हुई अस्मिता और नैतिक मूल्यों का बोध करा सके । इस दृष्टि से दूसरे लोग भी सतर्क रहे होगे। उनके मन में अपने देश की मिट्टी में ऐसे बीज बोने की इच्छा जगी होगी, जो नैतिक मूल्यों की फसल उगा सके । हमारे मन मे उस समय कोई बहुत बडी कल्पना और योजना नही थी, पर एक सुचिन्तित प्रक्रिया के आधार पर थोडे से कार्यकर्ताओं के साथ सरदारशहर की घरती पर हमने अपना अभियान शुरू कर दिया। नंतिक उत्तति का आधार है नैतिक विचार। विचार से आचार प्रभावित होता है और आचार का प्रभाव विचारो पर होता है । विचार और आचार की समन्विति ही जीवन है । किन्तु विचार जगत्‌ मे उथल-पुथल मचे बिना आचरण की बात पैदा नही हो सकती | इसलिए अणुन्नत ने सबसे पहले विचार-क्रान्ति की ओर ध्यान केन्द्रित किया । अणृत्रत का एकमात्र उद्देश्य है जाति, वर्ण, वर्ग, भाषा, प्रान्तत और धर्मंगत सकीर्णताओ से ऊपर उठकर मानव मात्र को भात्म-सयम और नैतिक मूल्यो के प्रति प्रेरित करता । जिस समय जातीयता, प्रान्तीयता, वर्ण- व्यवस्था, भाषा आदि को लेकर सकी मनोवृत्ति वाले लोगो मे एक प्रकार का अन्तहेन्द्र चल रहा था, उस समय अणुव्त ने मानवतावादी दृष्टिकोण देकर लोकजीवन मे चारिच्रिक मूल्यो को प्रतिष्ठा देने का सकल्प व्यक्त किया | इस सकल्‍प की पूर्ति के लिए अणुृन्नत-यात्राओ का दौर प्रारम्भ हुआ । हमारे पास गृहस्थ कार्यकर्ता सीमित थे, इसलिए हमने अपने साधु-साध्वियो को इस दृष्टि से तैयार किया। उनकी पद-यात्रा का विस्तार हुआ । कश्मीर से कन्याकुमारी तक अणुन्नत के कार्यक्रम होने लगे | जनता ने पूरी यहमागहमी के साथ उनका स्वागत




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