श्रीमद्वाल्मीकी - रामायण अयोध्याकाण्ड उत्तरार्द्ध - 3 | Srimadvalmiki Ramayan Ayodhyakand Uttarardh-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
593
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चतुःपद्चाश. सर्ग: ५5७
धन्विनौ तो सुर गत्वा सम्पमाने दिवाकरे |
गद्जायमुनयो: सन््धौर आपतर्नितय झनेः ॥प्या
इस शअ्रकार आपमघ्र म वातचात्त करते हुए दोनीं घनधारी माई
सुथ' के छिपते-छिपते स्गम पर स्थित भरद्वाज जी के आश्रम से
पहुँचे ॥ ८ ॥
रामस्त्वाश्रममामाद्य त्रासयन् संगपतियः।
छह हि
ग़त्ा महृतमघ्वानं भरदाजमुपागमत् ॥&॥
आश्चम में दो धनुद्ध रो को आते देस, आत्रमवासी पशु पत्ती
भयभीत हुए | इतने ही में श्रीरामचन्द्र जी एक मुहृत्त' चल कर,
भरद्वाज जी की ( कुटी के ) पास पहुँच गए ॥ ६ ॥।
ततस्त्वाश्रममामाध म्नेदर्शनकाडूविणौ ।
सीतयाज्लुगतों बीरों दूरादेवायतस्थतुः ॥१०॥
चदनन्वर सीता सहित दोना बोर भरद्ाज जो ऊन दर्शन करने
की अभिलापा स, कुटा स छुछ दूर रूक गए। ( रुफन या कारण
मूपण टीशाकार ने यह बतलाया है. कि सम्ध्या वा समग्र था।
अतः उस समय ऋषिप्रधर अग्निहोत्न फर रह थे । कहीं उनके
काय में विप्न न पड़े, अतः कुछ देर वे ठहर गए, किन्तु जब
अनुमति मित्र गई तव ) ॥ १०॥
स प्रविश्य महात्मानमपिं शिप्यगणेट् तम |
२संशितवत्तमेका्य तपसा रूब्धचश्षुपत्् ॥१ ६॥ -
र्रम्घौ- सुझ्मे बरमान 1 २ उशिततव-झवौदएह्रत । (गो)
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