कसाय पाहुडं | Kasaya-pahudam

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Kasaya-pahudam  by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) के विषय पृष्ठ विषय पृष्ठ घन्य अनुभागस्थान अनन्तगुण- हे हे वृद्धिरूप है इसकी सिद्धि पी मा जघन्य स्थानक परमाणुआं ०३ रैरे३ छह अधिकारोंके द्वारा प्ररूषणा ३५२ काण्डकका प्रमाण निदृश ३३४ | प्ररूपणा जघन्य अनुभागस्थान सत्कमरूप नमो रेण२ की भी बन्धस्थानके समान है श्रेणि रे५२ इसकी सप्रमाण सिद्धि ३५२ उत्कषेण अनुभागब्वद्धिका कारण नहीं है मा] सावादोधे. है इस बातकी सिद्धि २३३५ | अल्पबहुत्व कक अन्तिम स्पर्धंककी अन्तिम वर्गणाका दिलीय रद्द एक परमाणु अल्ञुभागस्थान क्‍यों है तीय आदि अजुभागस्थानका विचार ३६५ इस वातकी सिद्धि ३३६ एक कमंपरमाणु्क अविभागग्रतिच्छेदोंमें योगस्थानके समान अज्भुभागस्थानके अलुभागस्थान, चर, चर्गंणा और कथन न फरनेका कारण बज मम ये चारों संज्ञाएं बन जाती हैं प्रदेशोंके शलनेसे स्थितिघातके समान कह निर्देश ३६८ अनुभागघात नहीं द्वोता ३३७ | 'क कमपरमाणुके अविभागप्रति- संयमर्क अभिमुख हुए झन्तिम समयवर्ती च्छेदोंकी स्थान संज्ञा मानने मिथ्यादृष्टिके अनुभागबन्ध जघन्य रे हीं. स्थानम अनन्त स्थान क्‍यों नहीं होता इस बातका विचार १८ |. ३ यह होते इस बातका संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समययर्ती... विशेष उद्दापोह ३६६ मिथ्यादृष्टिका अनुभागसत्कर्म जघन्य अनुभागस्थानके बन्ध और उत्कषणसे क्यों नहीं है इस बातका विचार. ३१८ |. निष्पन्न होने पर चह बन्धसे अनुभागकी वृद्धि या हानिमें योग कारण निष्पन्न हुआ क्यों कहा जाता है नहीं है इस बातका निर्देश ३३६ इस बातका विचार ३७२ समुद्घातगत कंबलीके उत्कृष्ट अनुभागकी रिय किस भकार सत्ता कैसे सम्भव है इस बातकी सिद्धि३४१ उत्पन्न होती हैं आदिका विशेष जघन्यस्थानकी स्वरूपसिद्धि ३४४ ऊह्दपाह रे७४ जघन्य स्थानकी चार प्रकारसे प्रहपणा ३४७ बन्धस्थानोंके कारणभूत कषाय उदय अविभागप्रतिच्छेद्मरूपणा ३४७ स्थानोंके अवस्थान क्रमका निर्देश ३८० वर्गेणाप्ररूपणा ३४८ | हृतसमुत्पत्तिकस्थान विचार ३८००३९० स्पधकप्ररूपणा ३४९ | विशुद्धिस्थानका लक्षण ३८० अन्तरगप्ररूपणा ३५० | हतदतसमुत्पत्तिकस्थानविचार. ३९१-३९७ -अुनिविया+ फकलनूँ०




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