संसार की प्राचीन सभ्यताएँ तथा भारत से उनका सम्बन्ध | Sansar Ki Prachin Sabhyataen Aur Bharat Se Unaka Sambhandh

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Sansar Ki Prachin Sabhyataen Aur Bharat Se Unaka Sambhandh by रामकिशोर शर्मा - Ramkishor Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ ) (इतिदासशर विद्वान सुदास और दिवोदास को राजाओं के नाम मानते हैं) वा अर्थ बुद की कामना करने वाला (अथवा! शान प्रद्मश देने वाल करते हैं! इल्यी दस्यून पुर आयही नित री! (२-२० ८) का अर्थ गर्यों प० मगरदेव झास्त्री जैसे उस्तुतके विद्वान धद्वग्युओं पे छादे की अथवा लोइबत्‌ दृढ़ पुरियों का मादा करने वाला! कहते हैं. (भार तीय सुस्त झा वितास) वहाँ अजमेर माष्य में उसझ़ा अर्थ इस प्रकार किया गया है--+ दस्पून इस्वीव्आत्मा पे नाशवारी अब शत्रुओं को नाश कररे, आपसी आवागमन सम्प'घी, पुर रूदेइ बाधनों को, नितारीतरूगर कर घाता है। ऋ० ७-८३ में “दाशयल” तथा “दश राजान ” दग्द हैं मिनसे अनेक विद्वानों ने दाशराल अयग् दस राजाओं का अर्थ युद्ध किया है हिख अजमेर सत्करश में दस राजान की भय दस तेगस्‍्वी पुरुष रिया गया है तथा दस राजाओं पे युद्रका कहीं बशन नहीं है। इसी प्रझार 'सप्त सिंधु! का अर्थ खात प्राण किय्रा गया है । इ/ प्रसार दृष्टिकोण मेद तथा अथ भेद के असण्प डदाहरण गिनाये जा सफ़ते हैं। यह निशय फरता तो विद्वानों का फ़ाय दे कि इनमें कौनसा अर्थ रही है और फौनत गलत! भर्यों तह लेखरू वा सग्य घ है उसे इनिदासकारों का दृष्टि कोण ही रद्ती दिखाई देता है | अतः इस पुल्त+ में मारतीय सम्पता का वर्भन इ'हीं विद्वाएों वे अथ मे आपार पर किया गया है / इतना और कहना आपशध्यक्त है कि ऋग्गेद मा आयागपान्त पटन तथा मनन तो लेसऊ ने नहीं हिया है ऐिर मी उसने उस महान प्रथ या एक दो थार अबगेजन करने का प्रयन स्पा ऐ-> हिंदी तप अग्रेजी अनुवादों के सक्षरे से तथा णो सामग्री उत्ते उपयुक्त दिसाई दी उसका उपयोग यथास्यान करने का प्यल किया है। पुस्तक के सम्पस्ध में -- पुछफ़ में बर्गित अन्य विपयों पे सम्भध म भी युछ शब्द यहाँ कह देना आवश्यक भान पढ़ता है । पृस्तक में उन सम्पताओं का दर्ण॑न है जो उख्र में प्राचीनतम मानी घाती हैं तथा उनके बन में घातु-युण, मय पापाण-सुग, पुर पापाण मुग, दिम-काल आदि शब्द आते हैं तथा मतुघ की मिन मिन सस्लों तथा माया छमूद आदि का भी उल्टेख करना पढ़ता है । अत यह आवश्यक समम्ध गया हि इन युगों तथा नसस्‍्नों आदि का भी ड्छ शगन क्या क्षय जिससे उत्त देशों की सम्बशाओं को दुल्नात्मक इप्टि से रामसने में संहयश मिरे । फिर इन युग को समभले ऐ लिये और भी प्राचोन कार में ज्ञाना पढ़ता है अठ पुस्तक का प्रारम्भ सृष्टि निमात-काल से तथा मनुप्त शी की इससि से वरना टीफ शात हुआ। आ प्रथम अध्यप्य में सुप्टि का निर्णय छा बर्तन झहेंद से किया शपा है। इस बैन में पदजत्य दिद्वानों पे विशेषज्र शर्टित रु विवासयाद के दिद्धा-त रे अधिड़'ए में लीआर दिया गया है, परयोडि अय बोह ठिद्वान् ऐस आब टक सामने




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