यूरोप का इतिहास भाग - 3 | Yurop Ka Itihas Bhag - 3

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Yurop Ka Itihas Bhag - 3  by रामकिशोर शर्मा - Ramkishor Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ वर्तमान युग का आरम्भ लगता जाता था । मनुष्यों के हृदय स्वतंत्रता की नइ लहर से उछल रहे थे । वे पूर्ण स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहते थे । जीवन का ढंग भी बिलकुल बदल गया था । कुछ दिनों के लिये शान्ति भी स्थापित होगइ जिस से ज्ञात होता था कि भविष्य बहुत उज्ज्वल तथा शान्त होगा । पुराना समय चला गया । पचित्र मेत्री (होली अलायन्स) इसी समय रूस के जार अलक्जन्डर के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि परमात्मा ने मुझे यूरोप में शान्ति स्थापित करने के लिये भेजा है। अत: उसने पेरिस नगर की कान्फ्रन्स के बाद एक योजना तयार की तथा प्रशा और आस्ट्रिया ने भी उसका साथ दिया । यह नेपोलियन द्वारा जगाये हुए प्रजातंत्र के विचारों के विरुद्ध-जिसे वे अधम समझते थे-एक धार्मिक समभोता था | तीनों देशाधिपतियों ने मिलकर यह घोषणा की, कि अब वे अपने २ देशों में तथा बाहरी देशों से भी इंसाई घम के सिद्धान्तों- न्याय, उदारता तथा शान्ति--के अनुसार व्यवहार करेंगे । इस घोषणा से यूरोप में एक नये पवित्र युग का आरम्भ होता दिखाइ दिया, किन्तु शीघ्र थे ही लोग अपने उच्च उद्दशों से हट गये । इन्होंने शासन-काय में प्रजा के भाग लेने के विचार को क्रान्ति- कारी तथा शान्ति भंग करने वाला समभझ्ा । अत: उनका घोर विरोध किया और उन्हें दबाने की पूर्ण चेप्रा की । इस मेत्री का गूढ़ उद्देश्य ही वियाना कांग्रेस के निणुयों को स्थायी बनाना था । मेत्री के विधाता जानते थे कि वे समय की लहर के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं । वियाना कांग्रेस में जनता के




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