प्राचीन जम्बुद्वीप | Pracheen Jambudweep

Pracchin Jambuddeep by रामकिशोर शर्मा - Ramkishor Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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33 -- आत्म-निंवेदन -- करारविन्देन पदारविन्द मुखारविन्दें विनिवेशयन्तम्‌ । वटस्य पत्रस्य पुटे बयान वाल सुकुन्द हृदये स्मरामि ॥ वाणी विराजो पथ भी बताश्रो जो सत्य हो जातंक-दीपकाथ । ले लेखनी लेखक ग्रन्थ तेरा श्राया यहाँ श्रात्म-निवेदनार्थ ॥। गस्पस यह शास्र एक प्रमाण-दायक शास्र है । जिसके मुख्य कारण हैं सूर्य ग्रीर चन्द्र । ये दोनों ग्रह में गणित तथा फलित में भ्रपनी प्रधानता रखते हैं । भ्रतएव प्रथम प्रघानों के लिए प्रयाम ? सूर्य कीं उपासना से गणित-ज्ञान तथा चन्द्र की उपासना से फलित-ज्ञान होता है मुमममरमम इस नास्र द्वारा कृषि-व्यापार-उद्योग-प्राचार-घर्म-गति श्रादि के लिए जो योग्य-काल का निर्णय मे उपयाग दर लि रेड में ४प्नदि किया जाता है वह सूय-चन्द्र द्वारा सम्पादित होता है । जिसे वताने के लिए ग्रन्थ श्रौर पचाग एक मात्र साधन हैं । गा त्त द्वारा पचाग-निर्माण तथा ग्रन्थ द्वारा उसका उपयोग फलित-निर्माणु बताया जा सकता है। यहीं कारण है कि भ्राज इस रूप में श्रापके समक्ष श्राने का । हाँ तो योग्य-काल जानने के पूर्व काल-मान की परिभाषा जानना श्रावक्यक है । काल-मान के विभिन्न भ्रग होते हैं। कब किस अग का किस कार्य में उपयोग हुमा है होता है होना चाहिए । --इसका निणुय इस शास्र द्वारा लिखने के लिए इन पेंक्तियों में वैठ गया हूँ । जो भी काल-मान हैं उनमें इतिहास पुराण वर्णित युग शब्द विवादास्पद तो नहीं किन्तु अमात्मक अ्वद्य है । विचार करेंगे पाठक कि किस ग्रत्थ में किस विषय का श्रात्म-निवेदन है । फलित का ग्रत्य उसमें युग की मीमासा श्राइचये किन्तु नहीं । इस युग-मान के विचार-मध्यन्तर में प्रकृत ग्रत्याध्यायियों को कई उपयोगी विषय प्रकाश में आयेंगे । जिनका विवेचन भ्रभी तक नहीं किया गया । यह तो ज्योतिष ग्रन्थ है इसमें सभी शास्त्रों की सहायता लेनी पढ़ती है । मुख्यतया इस क्षेत्र वाले ग्रन्थों के साथ वेद व्याकरण तक गणित पुराण इतिहास भूगोल खोल श्रध्यात्म दैशिक साधारण ज्ञान प्राणी-परिचय साहित्य प्रा्वीन-अर्वाचीन भाषा-भाव-ज्ञान क्रमिक-पद्धति परिभाषान्तर कालान्तर निमित्त-निदान श्रायुर्वेद झादि श्रनेक व्यवहार-योग्य क्षेत्र की आरावश्यकता पड़ती है । इन सर्वों के द्वारा कभी नयी खोज हो जाती है जिसे जनता के समक्ष रखना पडता है। यही कारण है कि सर्व प्रथम युग शब्द का उपयोग करना पडा अस्तु । विकाद श्रर्थों में उयोतिष का आदि ग्रन्थ सूर्य-सिद्धान्त है । उसमें जो लम्वा-लम्बा युगमान दिया गया है है।.... चर




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