मयूर पंख | Mayur Pankh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ई
में ध्रत पुरों वी परम्परा होती ता तुम्दार चरणा पर मन
जान कठिने हूय सर्मा्धित हात |
( चरित्र षा प्रवण)
चरित्र ( श्राति हो ) हय समपण को वात्र वसी? नहँ मग्राया
कि हुदय-समपण हुआ । वाह । यहः श्रव्छा सोमाग्य है ? नक्नि
यह सोमाग्य हु या सयाग ?
डेली दाना 1
व्यरिज्र मापा रानी ? तुम वया समकता हा
भाषा सोमाग्य का सयाम झयवा समाग का सौमाग्य !
चरित्र ठोक है मुकमें इतना शक्ति है कि मैं सौभाग्य का सयाग बना
लेता हू श्रौर सयाग॑ को सौमाग्य ! ( देखकर ) हाँ ! वावा
कही हें?
भाषा भोतर वश मूपा ठाक करन गए हूं ।
व्यरितव भरयनीया दिसी श्रोर की ?
शैली भ्य इन भ्ररस्था में व किसको यश मूंपा ठाक वरेंग 1
भाषा शतां वहिन | व्यग्प न बरो । यरि तुम्हारा वश मूपा ठोव ने
हाती ता व मुक श्रात्ा दत दि मे तुम्हारी वश मूपा ठाव
करू । वहतो तरे महोन्यश्रा रहं ध्सलिए रटो
समझा हि. जखब सह्य ने समक्ष उन्हें श्वन्पवस्थित नहीं
रतना चाहिए 1
रियर भच्छा वया ससक महातय धा रहे हू
रीली दह वविमी भा समय यं भ्रा गक्तं ह् ।
चरिय मा सतत हु है तव मुझ यहीं नस रहना चादिएं । सुक्के उनसे
वहा हर नगता हू। उताए जिय कामके पिए मुम भेजा
था बह तो हुमा ही मरीं नरव्नि डर के साय उनने प्रठि
श्रद्धा भी उमड़ पाती हू 1 थे जीवन में इतन गदर उनरते है
User Reviews
No Reviews | Add Yours...