कौटलीय अर्थशास्त्र | Koutaliya Arthashastra

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Koutaliya Arthashastra by पं. उदयवीर शास्त्री - Pt. Udayveer Sastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपोद्धात अब > 9 न-+-5 कीटलीय अेथैशासत्र, संस्कृत साद्ित्यमे, अपने विपयका हच्चकोडिका ग्रन्ध है। सबसे अथम इस तन्रन्थकों सन्‌ १९०९ ई० में, मेखर राज्यकी अन्थशालाके अध्यक्ष श्रीयुत स्नामशास्त्रीने प्रका- शित कराया | तथा अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगोंके छुमीतेके लिये उन्होंने इस गन्थका इंग्लिश भाषामें अगुवाद भी करादिया | डसी 'समयसे इस दुरूद् प्रस्थकों समझनेफे लिये विद्वज्नन पर्याप्त परि- भ्रम कररद्वे हैं! दामशास्त्रीन पदिले पहिल इस प्रन्थका इंग्लिदा अजुबाद किया; इसाछिये उनका प्रयथल अशसनीय है, परन्तु यद कहे बिना नहीं रहा जासकता, कि उस अमुवादर्म अनेक्र स्थलॉपर स्खलम हैं। जिनका यहां उलछ्छेण करना अनावश्यक द्वैक। इस फार्यक्रे अननन्‍तर इस घिपयपर भव्रेक साप्ताद्विक मालिक पत्र पत्रिकाओोर्म लम्बे चौड़े विचारपूर्ण लेस समय श पर ध्रकाशित द्ोलेरहे, परन्तु पुस्तकफ़ रूप फोई महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित नहीं हुआ । अचसे पांच बरस पहिंझे में यह विचार फररद्वा था, कि इस अन्धथका अलुयाद॑ फरूं, जिसस सर्वेन्लाधारणके समन्मुख यह विषय उपस्थित किया जासके, तथा इसपर और भी अच्छा विचार दोसके | कुछ दी समयके अनन्तर मने खुना कि प्राणनाथ विद्यालड्वार इस अन्थका अजधाद -कररहे हैं, में चुप होगया | और सन ६०२७ ई० में वद अजबाद प्रकाशित होगया। उस अज्ुवादके देखनेपर, में इसका' अच्छीतरद निणय करसका। कि मुझे भी आपने विचार कार्यरुपमें परिणत फरदेने चाहिये । # अशुवादके समय, किसों २ स्थलपर, हमने शांखोनोके अमका दिग्दशेन कराया है । पाठक चद्वीपर देखेंगे




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