ब्रह्मचर्य व्रत | Brahmacharya Vrat

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Brahmacharya Vrat by शंकरप्रसाद दीक्षित - Shankar Prasad Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्छ अजहाचये से हानि स्मरण कीर्चन पेलि मेक्षण गुधमापणम्‌ | सकतपो5ध्यवसायश्च फ्रियानिष्यत्ि रेदब |॥ पतन्मैथुनमष्टोग मददन्ति मनोपिण । विपरीत श्रह्मर्य मेतदेपाप्टनक्षणम्‌ ॥ 'स्मरण कीरेत, ऋत्ि अवलोशइन, गुप्त मापणु, सच्दप, अष्प- बल्ाय और क्रिया मियु क्ष, ये मेधुन के झ्ाद अग हैं । इन छक्षणों से परे रहने का नाम अद्वाबय दे * देखी या सुती हुई स्त्रियों को याद करना, स्मरण” नाम सैथुन का पहला अग है। स्प्रियों की प्रशसा करना, उनके दिपय में चातचीत करना--कीर्सन! मैथुन का दूसरा अंग है ।स्प्ियों के साथ किसी प्रकार फे सेज़ सेलना 'केलि” मैथुन का तीसरा अंग है। काम दृष्टि से किसी स्त्री को देखना, प्रेक्षण” मैथुन का चौथां अग है। किप्रियों से छिप कर यातें करत 'गुष्य सापण' पॉयवा अंग है। स्पी सम्बाधी भोग भोगने का विचार लाना संकल्प! मैथुन का छठा अग है। स्त्री-प्राप्ति फी चेष्ठा करना, अध्यवसाय! नाम का सातरयोँ और स्त्री सम्भोगक द्वारा धौयें नप्ट करना, 'क्रियानितत्ति! मैथुन का आदयाँ अंग है। अजिस अकार पुरु्षो के लिये स्त्री सम्बन्धी आठों कार्य स्याब्य दे इसी तरह स्थियाँ के लिए भी पुरुष सम्भधी आठों बातें स्वाब्य है ।




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