सनाथ - अनाथ - निर्णय | Sanath - Anatha - Nirnay

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Sanath - Anatha - Nirnay by शंकरप्रसाद दीक्षित - Shankar Prasad Dixit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१ सनाय अनाथ निर्णय कह दिया, कि मुनि को मूठ तो न बोलना चाहिए ! चौरों के सिवा और फो$, इस प्रकार सरप्ट बात कहने का साहस नहीं कर सकता । वीरो के हृदय, स्वच्छ रहते हैं, उनमें साहस होता है, इसलिए ये किसी भी फासण या भय से अपने #दय के भावों फो छिपाते नहीं, किन्तु स्पष्ट प्रकट फर देते हैं। इसके सिवा, जिससे हम अपना भ्रम मिटाना चाहते हैं, उसके सामने मनोगत भायों फो छिपाना भी अनुचित है। ऐसा फरने से, श्रम फा मिटाना कठिन हो जाता है । राज्य कौ घात मुनफर और विशेषत राजा ने झुनि पर सपावाद का दोप लगाया इस पर से, उन मुनि को राजा के प्रति दिंचित्‌ भी कोव, क्षोम या घृणा नहीं हुई । वें मुनि जानते थे, फि राजा में, मिथ्यात्व ( अज्ञान ) है, इसी से यह्‌ धन सम्पत्ति आदि न होने में ही अनाथता मान रहा है, और इसी कारण यह मेरे कयन को, कि तू स्वथ भी अनाथ है. !! मूठ जान रहा है। जब यह अनाथता फे रूप फो सममत लेगा, तन स्वय ही अपने- “आप को अनाथ मान लेगा । अमी तो यह अपने पक्ष को लेकर कह रहा है, और में अपने पक्ष को लेकर कह रहा हूँ। मुझे सपना पक्ष इसे सममक्ाना चाहिए। इस प्रकार विचार कर, ।.. मी: “जन से कहने लगे-- ञ दर




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