संस्कृत - शब्दार्थ कैास्तुभ | Sanskrit Sabdarth Kaustubh
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
संस्कृत | Sanskrit
पुस्तक का साइज :
60.71 MB
कुल पष्ठ :
866
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झच + नाश ( १ शकोतिको 3 श्घन- नाश उघ न नाशंन ( बि० ) प्रायश्रिवात्सक । अंक के अस्त में अगले दूसरे झंक के अभिनय पाप दूर करने वाला । की सूचना या आभास जो पात्रों प्वारा दी घघर्म ( वि० ) हंडा। जा गर्म न हे । जाय ।--तंत्र ( न० ) श्रक्कगणित या बीजगणित ध्रघमघंणम ( च० पापनाशक मंत्र विशेष । यह मंत्र विधा +-थघारणें (न० 2 घारणा ( ख्री० वैदिक सन्ध्या में पढ़ा जाता है । 9 चिन्हित । २ किसी पुरुष का पकड़ कर रखने की रीति 1--परिवत ( पु० ) दूसरी ओर उलटना । करबट । २ किसी का अशलिज्ञन करने के लिये करवट बदलना ।--पालिः--पातती (सखी ०) १ आलिंज्जन 1 ९ दायी । घाय ।--पाशः ( पुष ) अक्गणित की विधिविशेव ।--भाजू ( विष ) १ गोद में बैठा हुआ अथवा किसी को ( बच्चे की तरह ) कसर पर रखकर ले जासे हुए । २ सहज इ्पघविषः ( पुर ) सपे । घघशंसः (५० ) दुष्ट मनुष्य यथा चार आदि | झघरशंसिग ( बि० ) मुज़बर । दूसरे के पाप कर्म या जुर्म की ( अधिकारीवर्ग के ) सूचना देने वाला । घायु+ (पुल) पापदणी । जिसका जीवन पापसय हे । घोर ( वि० ) जा भयानक न है ।--रः ( पुर 2 बससिििफपण शिव । मद्दादेव ।--पथः --मागे ( घु० ) शैव । में बराप्त । समीपवर्ती । शीघ्र श्राप्व्य ।--मुखं या शिवपंधी ।--प्रमाशं ( न० ). मयडूर शपथ या -झास्य ( न० ) किसी नाटक का वह स्थल परीक्षा जिसमें उस नाटक के सब इश्यों का खुलासा घोर ( खी० ) भाइमास के कृष्ण पन्न की १ ४शी | किया गया हो ।--चिधा ( ख्री० )गणितशाख्र । इस तिथि के शिव जी की पुजा की जाती है । | शैकनस झ्ज्जनम् ( न० ) १ चिन्ह । चिन्हानी । इसीसे इसका नाम अधारा पढ़ा है । २ चिन्हित करने की क्रिया । धो सम्बोधनवाची अध्यय | झंकतिः श्रुति ( पु० ) १ पवन । २ झस्ि। ३ घ्ाघोष ही चि० है प्लुखस्वर (---पः (३ पु० 0 व्यक्ञन घटा । ४ अभ्निहात्री ब्राह्मण | चारों में से किसी का प्लुत स्वर । घ्ौकुट। अडूटः हू पु ) चाबी ताली 1 झप्न्यः ( पु० ) प्रजापति । पव॑त । ( वि० ) मारने के | झंकुर झडुर (पुन ) १ अँखुआ । सवोस्धिद | गास | झयोस्य -- ्स्या ( स्री० सौरमेयी । गौ जोन | अँगुसा। २ ड्ाभ । करला | कनखा । भारी जाय था जो न सारे । ३ झुकीले चौघड़े दाँत । ( आन ) ४ प्रशाखा । प्रेम ( स० ) 9 सूधने के झसाग्य । २ समदिरा । परजन । सन्तति | £ जल रक्त ७ केश | आराब | रू सूजन । गुमई्ी । धंकू झट ( घा० आत्मने० ) देवासेढ़ां चलना | । ध्ंकुरित हरित ( वि०. ). शँखुआ निकला [अक्षपति---झकयते अ्वयितुं अद्धित] १ चिन्दित ... हां । उगो हुआ । जमा हुआ । करना । सिशानि लगाना । २ गणना करना | अंकुशः झडशः १ कॉँटा विशेष जिससे हश्थी हाँका हे ३. कलक्तित करना । दागी करता ४ चलना । जाता. है। र रोक | थाम ।--अहः ( पु० जाना । सगे चलना । ... महावत | हाथी चलाने बाद्य ।--दुधरा ( पु० ) घेंका श्र | पु न० ) 9 सोदी। करोड । २ चिन्ह । .... सतवाला हाथी ।--घारिन् ( दु० ) दाथी रखने निशान । हर संख्या | ४ पारवे । ओर । तरफ़ । £ ं वाला अथवा जिसके पास हाथी हो सासीप्य । पहुँच ६ नादक का एक सांग । ७ कौँटा । मैकूषः बड़ देखो अज्डुश कॉरेदार चौज़ार । दस अ्रकार के रूपकें में से शकोठ अंकाठः अंकेालः ध्ह्ोटा ध्ह्ोठा एक । £ टेढ़ी रेखा । रेखा ।-श्घतारा शो ( पु० ) पिश्ते का पेड़ । (नयड्ाबतार) (पु०) किसी नाटक के किसी एक | छंकालिका झडोस्तिका ( खी० ) आाखिज्ञन
User Reviews
rakesh jain
at 2020-12-04 13:34:21