जापान की बातें | Japana ki Baten

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Japana ki Baten by विष्णुदत्त शुक्ल - Vishnudutt Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ # जापानकी बातें % गयी है और जिन्हें साफ सुथरी पोशाकमें मजदूरोंको देखनेके अब- सर ही नहीं मिलें नहीं कर सकते । रंगूतसे चढकर जहाज ६. अप्रैठको पेनांग पहुंचा । सुना था यहांके प्राकृतिक दृश्य बड़े मनोरम दें। इसलिए और स्वाभाविक कोतूहलके कारण भी पेनांग देखनेकी उत्कण्ठा बड़ी प्रबल थी | एकदिन पहिले ही जहाजोंपर नोटिस लगा दिया जाता है कि अगछे बन्द्रगाह पर किस समय जहाजके पहुंचनेकी आशा की जाती है । अतः पह्िले ही से माठम हो चुका था कि ६ अप्रैठको प्रात काल जहाज वहां पहुंचेगा । एक दिन पहिले ही से उत्सुकता थी कि कब पेनांग आये । आखिर सबेरा हुआ । केबिनसे वाहर निकल कर डेकपर आया । किनारा एकदम नजदीक आ चुका था । सामने जो नजर गयी इतना मनोमोहक प्राकृतिक दृद्य॒ दिखलायी पड़ा कि तवीयत उछल पड़ी । पहाड़ ब्रक्न जल हरीभरी घास प्राकृतिक हृथ्योंकी यही विशेष विभूतियां हैं । इनका प्राचुय पेनांगके स्थान-स्थानपर मिलता है । फिर उसके साध प्रातःकालीन सूयकी सुनहढी किरणें उस दृद्यको और भी अधिक चित्ताकर्षक बना रही थीं । समुद्रके ठीक किनारेका भू-भाग एक साठंकारिक काव्यसा प्रतीत होता था | पेनांगमें इस प्रकारके प्राकृतिक दृद्योंकी बहुत अधिकता है । यदि यह कहा जाय कि सारा नगर प्राकृतिक दृद्योका एक विराट समूह है तो भी कोई अत्युक्ति न होगी । वाटर फाल पेनांग हि आदि तो बहुत ही सुन्दर स्थान हैं । पेनांग हिलके ऊपर चढ़कर नीचेकी ओर देखनेसे सारा नगर बड़ा सुन्दर प्रतीत होत है।




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