कपिलायतनतीर्थमाहात्स्य | Kapilayatan Tirthmahatasya

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Kapilayntnatirthmahatasya by विष्णुदत्त शुक्ल - Vishnudutt Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीकपिलायतनतीयथमाहात्य । १७ इत्येवं ठुभयोनिना कुंभेषटोबोनिजन्मस्थानं यस्य स तेन मुनिना अगस्थन प्रष्टः स गतम्मयोनिः्प्द्रोभगवानसुराणां सेनानीरस्कन्दः स्मयन्‌ सचितोद्रेके प्रकटर्यन्नवोयाच चित्तेद्रेकः स्मयोमद इत्यमरः ॥७॥ सूतजी बोले कि जब कुंभयोनि अगम्त्य मुनि ने इसप्रकार प्रश्ष किया तो निरहंकारी भगवान्‌ स्कन्दजी ने अपने हृदय भें जो ताधों के भेद भरे थे उनको प्रकट करते हुवे कहा ॥ ७॥ आ्शुविप्रेन्द्र वच्पामि गोप्पं तीयमनुत्तमम्‌॥ यन्नाम शक्षुतिमात्रेण पापराशिः प्रलीयते॥ ८॥। दे विपेन्ध ! अनुत्तमं गोप्य तीये प्रवच्यामि श्रगु। यन्नामेति स्पष्टम्‌ (1 ८ ॥ दे विप्रेन्द ! एक उत्तम और गोप्य तीर्थ को कहता हूं, सुनो ! जिसके नाम श्रवण करने से पापराशि नष्ट हो जाता है॥ ८।॥ अस्ति देशस्स विपुलस्ससद्रीयालुकामथ: ॥ सहिछोमेदिनीएछे निस्ोदेय पावनः॥ ६॥ 'अस्ति स मेदिनीए्ट प्रथ्वीए्ठ महिष्ठ: आतिशयेन मद्दान्‌ मदिष्ठः पूज्यतमः निमसर्गीरुस्वभावादेव पावनः पवित्र: बालुकामय:ः समुद्रः बिपुलो देश: ॥ र ॥ पृथ्वी पर आतिशय पूज्य स्वभाव से हीं पवित्न वालुकामय समुद्र एक विपुल ( बहुत बढ़ा ) प्रदेश है ॥ २॥ चम्नोत्तयन नाम सखुनिवालुकामयसागर॥ बिरकाजे चकारोवस्तपस्तीवन्तपोधनः ॥ १०॥। यत्र देश चालुकामयसागर तप्रघग उत्तहो नाममु न खरदान न्तीमे तौरुणन्तप उधार ॥ १० !॥ अप डे ही ल्‍्




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