श्री - स्थानांग सूत्रम् भाग - 2 | Shri - Sthanang Sutram Bhag - 2

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Shri - Sthanang Sutram Bhag - 2 by कन्हैयालाल जी महाराज - Kanhaiyalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुधा शीका स्था०३ उ० २ खन्हे२ धर्तेचिशेषप्रतिपत्तिनिरुपणम ११ छाया--अयो यापाः पज्ञप्ता।, तथ्था-प्रथमो याम$, मध्यमी याम३, पश्चिमो यामः । जिभियामेरात्मा केवलिप्रज्ञप्त परम लक्ते श्रवणतया, तथथा-भप्थमो यामः, सध्यमों यामः, पश्चिमो याम। । एवं यातरतू-केवलब्ञानमुत्पादयति, तथथा- प्रथमो याम), मध्यम्ों यामः, पश्चिमो यामः । त्रोणिवयांसि पतन्मप्तानि, तथथा-प्रथम- वय।, मध्यम वय), पश्चिम व 4ः एव एव गो ज्ञातव्य), केवलज्ञानमिति० ॥स ३२॥ टीका-- तभो जामा ? इत्यादि सुगमम्‌। नवस्स-याम।-प्रहर। सा स- प्तथटीपरिमितः काल. राजेदिवसस्यथ च चतुर्थ भाग इत्यथ;, राजिंद्विस्याष्ट प्रहरत्वात्‌, तथापीह जिभाग एवं यामत्वेन वितक्‍क्षितः पूवराह्ममध्यरात्रापररात्म सत्नाथ-तीन थाम कहे गये हैं जो ये हैं-प्रथम घाम, मध्यम घाम और पश्चिम घाम । इन तीन यासों में आत्मा केवलिप्रज्ञप्त घर को अवण कर प्राप करता है । इसी तरह आत्मा यावत्‌ इन तीन यापों में केचलज्ञान को उत्पन्न करता है | जीव की अवस्थाएँ भी तीन होती हैं-प्रथम अब- स्था, मध्यम अवस्था, और पश्चिम अवस्था ' इन तीन अचस्थाओं में आत्मा केवलज्ञान को उत्पन्न करता है” ऐसा पाठ, यहां से लगाकर कि आत्मा इन तीनों अवस्थाओं में केचलिप्रज्ञप्त धरम कों श्रवण कर प्राप्त करता है यहां पर 'भी लगाना चाहिये। टीकायथ-दिनके चौथे भागका नाम यास-प्रहर है घह थाम रातदिनका चतुथभागरूप है। क्‍यों कि रातदिन आठ प्रहर का होता है परन्तु यहां पर रातदिन का तृतीय भाग ही प्रहदर शब्द से विवक्षित हुआ है। इसी कारण पूर्वेरात्र, मध्यरात्र और अपररात्ररूप प्रहर शञ्रय को लेकर रात्रि सज़ाध-त७ याभ इच्यां छ-(१) अथम याभ, (२) भध्यम याभ लने (3) पश्चिम याभ, ला नणु याभेि।भां मात्मा उपलिभरशस घर्माने अवछु छा आप्तः डरे छे, जेप८ अभाएे जात्मा जा त्णु याभेमां डेवणर्वान पथन्‍तनी पस्तुण। आ्त 3री शर्ड छे, बनी जवव्थाजा पणु नए छाय छे-(९) अधम स्वस्थ, (२) भव्यस खपस्था सने (3) पश्चिम स्मपस्था, ५ खात्मा जा त्रणु स्थ॒व- स्था्णामां उपक्षिभराप्त धर्मने अपछु &र आप्त ४री शरे छे, ” भा अथवथी लंने 6 ज। तछु जवस्थाओमां सात्मा उेपणज्ञान हत्पन हरी शहर छे, ? मजा अधन पयनन्‍तयु समस्त अथन अद्वणु १२५ व्नेष्ठ॑शे, (हिविसता थि।था लाने याम (प७२-पछे।२) 5छे छे, ते याम राजिओ वसता थे।था सागइप छे।य छे, धारणु से हिविसवा थार लने राजिता थार पडे।२ छे।य छे, परन्तु गे सूजभां याभ ( पहे।३ ) पध्थी राजि हे हिवसने। त्रीजे साथ वशविवा्मा , मान्ये। छे, मे ४ अरणे भूषोराज, भष्यरात णने जपरशत्र ३५ ५ पढे।-




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