समयसार का कलश | Samayasa Ka Kalash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[२४ )
पालजी और ५ धर्मदातजी । इनमे प० रूपचन्दजी और भैया भगवतीदासजी का नाम विशेषरूपसे
उल्लेखनीय है ! स्पष्ट है कि इन पॉचो विद्वानोने कविवर वनारसीदासजी के साथ मिलकर कविवर
राजमल्लजोी की समयसार कलश बालवोध टीकाका अनेक वार स्वाध्याय किया होगा । यह टीका
अध्यात्मके प्रचारमे काफी सहायक हुई यह इसीसे स्पष्ट है। प० श्री रूपचन्दजी जैसे सिद्धान्ती विद्वान
को यह टीका अक्षरश मान्य थी यह भी इससे सिद्ध होता है !
यह तो मैं पूर्वेमे ही लिख आया हैँ कि यह टीका हूंढारी भाषामे लिखी गई है । सर्वप्रथम
मूलरूपमे इसके प्रचारित करनेका श्र॑य श्रीमान् सेठ नेमचन्द बालचन्द जी वकील उसमानावादवालो
को है । यह वीर स० २४५७ मे स्व्र० श्रीमान् ब्र० शीतलप्रसादजी के श्राग्रहसे प्रकाशित हुईं थी ।
प्रकाशक श्री मुलचन्द किशनदासजी कापडिया ( दि० जैच पुस्तकालय ) सूरत हैं। श्रीमान् नेमचन्दजी
वकी लसे मेरा निकटका सम्बन्ध था । वे उदाराशय और विद्याव्यासगी विचारक वकील थे। अध्यात्म
मे तो उनका प्रवेश था ही, कर्मशास्त्रका भी उन्हे अ्रच्छा ज्ञान था। उनकी यह सेवा सराहनीय है ।
मेरा विश्वास है कि बहुजन प्रचारित हिन्दीमे इसका अनुवाद हो जानेके कारण श्रध्यात्म जैसे गृढतम
तत्त्वके प्रचारमे यह टीका अ्रधिक सहायक होगी । विज्ञेषु किमधिकम् ।
--फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्री
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