भू - प्रदक्षिण | Bhu-pradakshin

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Bhu-pradakshin by रूपनारायण पाण्डेय - Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यात्रा । श्द रहा था | इसका नाम स्ट्रस्वोली ( 59:09700०पा ) है। यह सझुद्र के भीतर एक पहाड है । जिस तरफ ज्वालासुखी से निकल निकल कर गली हुई धातुएँ वस्सती हैं उसकी दूसरी ओर एक छोटा सा मछुओं का गाँव है | उसमें ढाई हजार के लगभग आदमी बसे हैं। मछलियों के सिवा और सव जरूरी सामान हफ्ते मे एक दफे सेसिना से वहाँ आता है। ऐसी जगह पर, ऐसी विपत्ति के पास, अगर ये लोग न बसते ते क्‍या इनका काम न चलता ? यह प्रश्न आप ही आप भन्त में उठता है। मगर नहीं, इनके यहाँ वसने का अवश्य कोई कारण है । हमारे जहाज का एक सल्लासी इसी गाँव का आदसी था । सन्नह घटे के बाद, रात के ११ बजे, हमारा जहाज नेपल्स नाम ६ 3००५, इदलियन भाषा में )7१७०॥ ) में पहुँचा । पास ही विस्यू- वियस' ( ४९५४४०४७, इटलियन भाषा मे 7०४प्र४० ) नामक ज्वाल्ना- मुखी से वराबर घुआं और आग की लपदे निकल रही थी। बोच बोच में उसकी अ्म्रि-शिस्ता प्रवल्न वेग से धक-धघक करके जलन उठवी थी। कैसा भयानक दृश्य था ! खबेरे भोजन के बाद मगर देसने निकत्ता । 'नेपल्म” को इटलियत लोग “नपेत्तीः कहते हैं । ब्रंगरेज लोग जैसे अन्य देशो के नामे को अनमाने ४ग से सत्षिप्त कर लेते हैं वैसे ही इटलियन लोगो ने अँगरेजों के देश इँगलेंड के छोटे नाम का खीच कर “इगिलटेरा? (छ8|शि।शपन) चना डाला है। नपेली का गिर्जा वहुत वडा है और अपेरा-हाउस ( एक प्रकार का घाटक-घर) भो बुरा नहीं है। मैंने ग्रिजें के भोवर जाकर देसा कि वहाँ के वृद्ध पादरी ने धूप-दीप फ़ूल नेवेद्य आदि से पूजा छुछू कर दी है । नपोली बहुत बडा शहर दे । उसमें साव लास झादमी बसते हैं । चन्दरगाह भी वहुच वडा है। नपोल्ली के निकट दी विस्यूवियस की ्




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