सुन्दरकाण्ड | Sundarkand

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Shrimadwalmiki - Ramayan (sundar - Vi) by द्वारका प्रसाद - Dwarka Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) ७ बन पाँचवाँ सगे ञ हि चन्द्रोद्य चर्णन ।- तहुपरान्त राषण की खतरों के छाततेक प्रकार से पट्टी हुई देख झोर जानकी जी के कहीं न पाते के कारण हनुमान की का दुःखी होता । छठवाँ से ९०-१०० तदनन्तर हृसुमान जी का, रावण के अमात्य पह- स्तादि के.घरों को समृद्धि तथा राबण की शिविका तथा उसके लता मगटपादि का देखना । . छः ९ सातवाँ सगे . १०१-१०७ हनुमान ज्ञी हारा पुष्पकषिमताव का देखा ज्ञाना और ज्ञामक्ो जी के न देखने के कारण हसुमान जी का मन में दुश्खी होना । हु 0 आव्वाँ सगे 1, १०८-१११ (पुपकपिमान वर्णन । नरवाँ सगे १११-१२९ पृष्फकविमान पर चढ़ कर हनुमान जी का रावण के चारों घर पड़ी हुई सुन्द्रियों के देखना । देसवाँ सगे १९९-१४२ | छु्दार्यो का वशन तथा मन्दोदरी के देख हमुमान ज्ञी का उसके सीता होने का श्रम होना | ॥ ग्यारहयाँ संग १४२-१५२ ' शावण की पानशाला धझोर हे वर्हा नशे में चूर पड़ो हुई सुन्द्रियों को देखते हुए दनुमान ज्ञो का ै पे मद सीत्ता कं खोज




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