सुन्दरकाण्ड | Sundarkand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
718
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२)
७ बन
पाँचवाँ सगे ञ हि
चन्द्रोद्य चर्णन ।- तहुपरान्त राषण की खतरों के
छाततेक प्रकार से पट्टी हुई देख झोर जानकी जी के कहीं
न पाते के कारण हनुमान की का दुःखी होता ।
छठवाँ से ९०-१००
तदनन्तर हृसुमान जी का, रावण के अमात्य पह-
स्तादि के.घरों को समृद्धि तथा राबण की शिविका तथा
उसके लता मगटपादि का देखना । .
छः ९
सातवाँ सगे . १०१-१०७
हनुमान ज्ञी हारा पुष्पकषिमताव का देखा ज्ञाना और
ज्ञामक्ो जी के न देखने के कारण हसुमान जी का मन में
दुश्खी होना ।
हु 0
आव्वाँ सगे 1, १०८-१११
(पुपकपिमान वर्णन ।
नरवाँ सगे १११-१२९
पृष्फकविमान पर चढ़ कर हनुमान जी का रावण के
चारों घर पड़ी हुई सुन्द्रियों के देखना ।
देसवाँ सगे १९९-१४२
| छु्दार्यो का वशन तथा मन्दोदरी के देख हमुमान
ज्ञी का उसके सीता होने का श्रम होना | ॥
ग्यारहयाँ संग १४२-१५२
' शावण की पानशाला धझोर
हे वर्हा नशे में चूर पड़ो हुई
सुन्द्रियों को देखते हुए दनुमान ज्ञो का ै
पे मद सीत्ता कं खोज
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